पहले थे सिर्फ 9 इलाके… बढ़ते-बढ़ते कैसे इतनी बड़ी हो गई राजधानी? दिलचस्प है दिल्ली के बनने की कहानी

“राजधानी दिल्ली… जहां आज हर ओर ऊंची-ऊंची इमारतें नजर आती हैं, लेकिन एक समय ऐसा भी था जब यहां मुगलों का राज था और उनकी शानदार इमारतें, किले और बाग-बगीचे इस शहर की पहचान हुआ करते थे. इसके बाद धीरे-धीरे दिल्ली में शहर बसने शुरू हुए. दिल्ली की शुरुआत जहांपनाह, इंद्रप्रस्थ, लाल कोट, महरौली, शाहजहानाबाद, फिरोजाबाद, तुगलकाबाद किला, दीनपनाह, सिरी, जौनापुर इन शहरों के साथ हुई थी.
दिल्ली का सबसे पुराना नाम ही इन 9 शहरो में ‘इंद्रप्रस्थ’ था. इसके बाद 12वीं शताब्दी में राजपूत राजा अनंगपाल तोमर ने इसे दिल्ली (ढिल्लिका) नाम दिया. उन्हें ही दिल्ली का संस्थापक भी माना जाता है. इसके बाद तोमर वंश के राजा अनंगपाल ने लाल कोट का निर्माण कराया. बाद में पृथ्वीराज चौहान ने इसे किला राय पिथौरा के रूप में विकसित किया. इसके बाद 13वीं शताबिदी में खिलजी वंश के अलाउद्दीन खिलजी ने सिरी को अपनी राजधानी बनाया. यह पहला शहर था, जिसे पूरी तरह किलेबंद किया गया.
दिल्ली में एक शहर था ‘सिरी’
सिरी, जो आज साउथ दिल्ली के रूप में जानी जाती है. इसमें सिरी फोर्ट, हौज खास, गौतम नगर, अंसारी नगर और ग्रीन पार्क जैसे इलाके शामिल हैं. हौज खास नाम का मतलब ‘हौज’ यानी जलाशय और ‘खास’ यानी शाही होता है. इस क्षेत्र का नाम उस बड़े तालब की वजह से पड़ा था, जिसे अलाउद्दीन खिलजी ने खुदवाया था.
उस समय सिरी शहर में लोगों के लिए पानी की जरूरत को पूरा करने के लिए इसका निर्माण कराया गया था. उस समय इसका नाम हौज-ए-आलाही रखा गया था. इसके बाद फिरोज शाह तुगलक ने इस तालाब की मरम्मत करवाई और इसके पास एक शानदार मदरसा, मस्जिद और मकबरा बनवाए थे. समय के साथ यह इलाका हौज खास नाम से जाना जाने लगा.
हौज खास में कब्र ही कब्र
हौज खास दिल्ली का आज एक बेहद खूबसूरत और दिलचस्प इलाका बन गया है, जहां पुरानी इमारतें, झील, कैफे और दुकानें हैं. साथ ही पुराना किला, मदरसा, मस्जिद और फिरोज शाह तुगलक की कब्र के साथ यह इलाका इतिहास को भी अपने में समेटे हुए है. हौज खास विलेज में कैफे, रेस्टोरेंट, डिजाइनर कपड़ों की दुकानें और आर्ट गैलरी हैं. आज हौज खास युवाओं में बहुत पॉपुलर है.
तुगलकाबाद किले का निर्माण कैसे हुआ?
इसके बाद गियासुद्दीन तुगलक ने तुगलकाबाद किले का निर्माण कराया. उन्हीं के उत्तराधिकारी मोहम्मद बिन तुगलक ने सिरी और किला राय पिथौरा को जोड़ने के लिए जहांपनाह शहर बसाया. फिरोज शाह तुगलक ने फिरोजाबाद का निर्माण किया. उन्होंने अशोक स्तंभ भी स्थापित करवाया. मेरठ से अशोक स्तंभ उठाकर दिल्ली लाया गया और कमला नेहरू रिज पर स्थापित किया गया.
इसके कुछ साल बाद मोहम्मद बिन तुगलक ने राजधानी को स्थानांतरित कर जौनापुर बसाया, जो पूरी तरह बस नहीं पाया. फिर फिरोज शाह तुगलक ने यमुना नदी के किनारे फिरोजाबाद नाम का शहर बसाया. 16वीं सदी में हुमायूं ने दीनपनाह नाम से एक नया शहर बनवाया, लेकिन शेरशाह सूरी ने उसे जीतकर उसका नाम शेरगढ़ रख दिया.
शाहजहानाबाद यानी पुरानी दिल्ली के इलाके
फिर मुगल सम्राट शाहजहां ने शाहजहानाबाद की नींव रखी थी. उन्होंने यहां लाल किला और जामा मस्जिद जैसी इमारतों का निर्माण कराया, जो आज दिल्ली की ऐतिहासिक धरोहर है. इसी शाहजहानाबाद को आज पुरानी दिल्ली कहा जाता है. पुरानी दिल्ली में आज कई मोहल्ले और बाज़ार विकसित हो चुके हैं. यहीं चांदनी चौक है. क्या आप जानते हैं कि चांदनी चौक, जो आज दिल्ली की सबसे मशहूर मार्किट बन गई है. इसे शाहजहां की बेटी जहानआरा बेगम ने बनवाया था.
चांदनी चौक के पास खारी बावली, दरियागंज, जो आज किताबों और थोक बाजारों के लिए मशहूर हैं, बल्लीमारान जहां फेमस शायर मिर्जा गालिब रहते थे और सदर बाजार जैसे इलाके बसे हुए हैं. पुरानी दिल्ली अपने अंदर कई धार्मिक स्थलों को समेटे हुए है. इनमें जामा मस्जिद, फतेहपुरी मस्जिद, सीसगंज गुरुद्वारा, लाल मंदिर और गौरी शंकर मंदिर जैसी कई धरोहर शामिल हैं. इस तरह शाहजहानाबाद यानी पुरानी दिल्ली आज सिर्फ एक ऐतिहासिक जगह नहीं, बल्कि संस्कृति, खानपान, बाजार और धर्मों का एक ऐसा संगम है, जिसकी गलियों में इतिहास सांस लेता है और हर मोड़ पर एक नई कहानी मिलती है.
1911 में ब्रिटिश हुकूमत के दौरान राजधानी को कोलकाता से दिल्ली लाने का फैसला किया गया. इसके बाद सर एडविन लुटियंस और हर्बर्ट बेकर ने ही नई दिल्ली का फ्रेमवर्क बनाया और दिल्ली में राष्ट्रपति भवन, संसद भवन और इंडिया गेट जैसे इलाकों को विकसित किया गया.
आजादी के बाद का सफर… कैसे बदलती और बढ़ती गई दिल्ली?
जब 5 लाख पाकिस्तानी आए दिल्ली… ये वो वक्त था जब देश आजाद हो रहा था. साल था 1947… भारत के इतिहास का एक ऐसा मोड़ , जिसने न सिर्फ लाखों लोगों की जिंदगी बदल दी, बल्कि दिल्ली के नक्शे को भी हमेशा के लिए बदलकर रख दिया. इस समय तक दिल्ली में सिर्फ दो ही इलाके थे और वो थे लुटियंस और पुरानी दिल्ली. इसके बाद 1947 के विभाजन के दौरान आए शरणार्थियों को बसाने के लिए दिल्ली में जमीनी रूप से कई बदलाव हुए. लोगों के लिए नई कॉलोनियां बनाई गईं.
ऐसे में सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती थी, इन लोगों को छत देना. इसके बाद कॉलोनियों के निर्माण की योजना बनाई गई. खेतों और खाली पड़ी जमीनों पर तेजी से आवासीय कॉलोनियां विकसित की गईं. इन लोगों को दिल्ली में बसाने के लिए सरकार ने तुरंत नई कॉलोनियों का निर्माण करवाया. इनमें से तीन प्रमुख कॉलोनियां राजेंद्र नगर, पटेल नगर और लाजपत नगर, जो आज दिल्ली के सबसे प्रतिष्ठित इलाकों में गिनी जाती हैं.
स्वतंत्रता सेनानियों के नाम पर कॉलोनियां
कीर्ति, नगर, मालवीय नगर, पटेल नगर, राजेंद्र नगर, मोती नगर, टैगोर गार्डन, मालवीय नगर, लाजपत नगर जैसी कॉलोनियों को बसाकर इनके नाम देश के महान नेताओं और स्वतंत्रता सेनानियों के नाम पर रखे गए. नई कॉलोनियों को सिर्फ रहने की जगह नहीं माना गया, बल्कि उन्हें एक ऐतिहासिक पहचान भी दी गई. राजेंद्र नगर का नाम भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के सम्मान में रखा गया. पटेल नगर का नाम लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल के नाम पर रखा गया. लाजपत नगर का नाम स्वतंत्रता आंदोलन के महानायक लाला लाजपत राय के नाम पर रखा गया. नामों का सिलेक्शन सिर्फ सम्मान देना नहीं था, बल्कि शरणार्थियों में राष्ट्रभक्ति की भावना पैदा करना भी था.
दिल्ली के रिहायशी इलाके बन गए
शुरुआत में इन बस्तियों में मकान, कच्ची सड़कें और सीमित सुविधाएं ही थीं, लेकिन समय के साथ इन इलाकों में विकास हुआ और आज ये दिल्ली के रिहायशी इलाके बन गए हैं. राजेंद्र नगर आज UPSC कैंडिडेट्स के लिए कोचिंग हब के रूप में जाना जाता है. यहां की गलियां लाइब्रेरी, होस्टलों और कैफे से भरी पड़ी हैं. वहीं लाजपत नगर दिल्ली का एक शॉपिंग डेस्टिनेशन एरिया बन गया है. जहां आज शॉपिंग के लिए लोगों की भीड़ लगी रहती है. लाजपत नगर के साथ-साथ सरोजनी नगर और कई मार्केट एरिया बन गए हैं. इस तरह दिल्ली की हर गली, हर मोहल्ला अपने अंदर एक इतिहास समेटे हुए है.
वहीं बांग्लादेश से भारत आए लोगों के लिए सीआर पार्क कॉलोनी बनाई गई. इसके साथ ही पंजाबी बाग, राजौरी गार्डन जैसे एरिया भी विकसित हुए. वहीं डिप्लोमेटिक एन्क्लेव के लिए चाणक्यपुरी को विकसित किया गया. इसके अलावा सरकारी कर्मचारियों के लिए RK पुरम, किदवई नगर, नेताजी नगर और सरोजिनी नगर को विकसित किया गया.
1970 से 1980 के बीच बसी कॉलोनियां
इसके साथ ही कुछ कॉलोनियां प्राइवेट तौर पर भी डेवलप होने लगीं. इनमें ग्रेटर कैलाश, साउथ एक्सटेंशन, डिफेंस कॉलोनी, वसंत विहार विकसित होने शुरू हो गए. इसके बाद समय के साथ-साथ ये एरिया बंटने शुरू हो गए और 1970 से 1980 के बीच मयूर विहार, निर्माण विहार, विकासपुरी, जनकपुरी, पश्चिम विहार, पीतमपुरा कॉलोनियां बसीं, लेकिन इनके साथ -साथ नांगलोई और उत्तम नगर जैसी कॉलनियां अपने आप विकसित होती चली गईं.
इसके बाद 1980 आते-आते रोहिणी, द्वारका, नरेला जैसे उपनगरों को विकसित करने की जरूरत पड़ने लगी. इसके साथ सरकार ने दिल्ली के आसपास के उपनगरों को भी विकसित करना शुरू किया. इनमें गाजियाबाद, लोनी, बहादुरगढ़, गुरुग्राम, फरीदाबाद और नोएडा का नाम शामिल है. इन्हें विकसित करने क मकसद दिल्ली में बढ़ती आबादी के चलते बढ़ी भीड़ को कम करना था. इस तरह दिल्ली की कॉलोनियां और शहर बनते गए और आज दिल्ली सबकी पसंदीदा है.