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राजस्थान में अरावली पहाड़ियों का संकट, विधायक भाटी ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी भेजी

अरावली पहाड़ी को लेकर दिल्ली से लेकर राजस्थान तक सियासी घमासान मचा हुआ है. भारत की सबसे प्राचीन पर्वतमालाओं में शामिल अरावली एक अभूतपूर्व पर्यावरणीय संकट के मुहाने पर खड़ी है. सुप्रीम कोर्ट की ओर से 100 मीटर से कम ऊंचाई वाली संरचनाओं को अरावली ने मानने की नई व्याख्या की बात सामने आते ही राजस्थान की सियासत गरमा गई है. पर्यावरण को लेकर तरह-तरह की चर्चा भी शुरू हो गई है.

भाटी बोले- आदेश खनन माफियाओं के लिए रेड कार्पेट जैसा

भाटी ने पत्र में आरोप लगाया है कि यह आदेश खनन माफियाओं के लिए रेड कार्पेट जैसा है. अरावली खत्म हुई तो पूरा उत्तर-पश्चिम भारत पर्यावरणीय आपदा झेलेगा. वही पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी इस अभियान को खुला समर्थन दिया है और सोशल मीडिया के माध्यम से इसे जन आंदोलन बनाने की कोशिशों में जुटे हैं. मसला क्या है? 100 मीटर की परिभाषा और उसका खतरा.

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की सिफारिश को मानते हुए कहा था कि केवल वही पहाड़ी अरावली कही जाएगी जो आसपास की सतह से 100 मीटर ऊंची हो और 500 मीटर के दायरे में दो या अधिक ऐसी पहाड़ियां हों तो उसे अरावली रेंज माना जाएगा. विशेषज्ञों का मानना है कि अरावली की जो नई परिभाषा सामने आई है वो उसके वास्तविक भौगोलिक संरचना से बिल्कुल अलग है.

राजस्थान में कितनी हैं अरावली पहाड़ियां?

राजस्थान में कुल 12,081 अरावली पहाड़ियां हैं. इनमें से केवल 1,048 ही 100 मीटर से ऊपर की ऊंचाई की हैं. इसका मतलब यह हुआ है कि राज्य की करीब 90 फीसदी पहाड़ियां तय दायरे से बाहर हो जाएंगीं. इसे लेकर राज्य में विरोध शुरू हो गया है.

पर्यावरण से जुड़े विशेषज्ञों का मानना है कि यह केवल कानूनी परिभाषा नहीं है, पर्वतमाला को खत्म करने जैसा कदम है. लोगों का कहना है कि नए आदेश से अवैध खनन को वैधता मिलेगी, रियल एस्टेट, होटल, फार्महाउस प्रोजेक्ट बढ़ेंगे और मरुस्थल का विकास भी तेजी होगा जिसका सीधा असर मानसूनी गतिविधियों पर पड़ेगा. जिसकी वजह से कई तरह के संकट पैदा हो सकते हैं. स्थानीय स्तर पर कई क्षेत्रों में जल को लेकर संकट खड़ा हो सकता है.

अरावली का 80 फीसदी हिस्सा राजस्थान में

अरावली को राजस्थान की जीवन रेखा भी करते हैं. यह करीब 692 किलोमीटर लंबी है और इसका 80 फीसदी हिस्सा राजस्थान के 15 जिलों से गुजरता है. राजस्थान में अरावली की वजह से तापमान में नियंत्रण, मानसून दिशा निर्धारण, दशा और दिशा भी बदल सकती है. साथ ही साथ धूल भरी आंधियों को लेकर संकट पैदा हो सकता है क्योंकि अरावली की वजह से समतल इलाकों में इसका असर कम होता है.

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