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पंजाब यूनिवर्सिटी में हलफनामे को लेकर विवाद तेज, छात्रों ने भूख हड़ताल की दी चेतावनी

चंडीगढ़: पंजाब यूनिवर्सिटी में एक बार फिर छात्र आंदोलन की आहट सुनाई दे रही है. विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा नए विद्यार्थियों से विरोध और प्रदर्शन को सीमित करने वाला हलफनामा भरवाने के आदेश ने कैंपस का माहौल गर्मा दिया है. छात्रों का आरोप है कि यह कदम संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत मिलने वाले अभिव्यक्ति और विरोध के अधिकार पर सीधा प्रहार है. छात्र संगठनों ने इस फैसले को “लोकतंत्र की आवाज दबाने की साजिश” बताते हुए भूखहड़ताल करने का एलान किया है.

हलफनामे पर बवाल: हलफनामे के अनुसार कोई भी छात्र प्रदर्शन, धरना या रैली करने से पहले प्रशासन से अनुमति लेगा.साथ ही विरोध केवल “वाजिब मुद्दों” पर ही किया जा सकेगा, लेकिन यह तय कौन करेगा कि कौन-सा मुद्दा वाजिब है, इस पर दस्तावेज में कोई स्पष्टता नहीं है. विरोध-प्रदर्शन भी सिर्फ पुलिस चौकी के पास करने की अनुमति दी गई है. नियमों के उल्लंघन पर छात्रों को परीक्षा से वंचित करने, प्रवेश रद्द करने या छात्र चुनावों से अयोग्य घोषित करने जैसी सज़ाओं का प्रावधान किया गया है.

छात्रों का आरोप:सबसे विवादास्पद बात यह है कि यह हलफनामा केवल नए छात्रों पर लागू किया गया है. छात्रों का मानना है कि यह रणनीति जानबूझकर अपनाई गई है ताकि नए विद्यार्थी, जो अब तक कैंपस की राजनीतिक संस्कृति से परिचित नहीं हैं, विरोध की मुख्यधारा से दूर रहें. इस बारे में लॉ स्टूडेंट अरिचित गर्ग ने बताया कि “पंजाब यूनिवर्सिटी एक्ट, 1947” के अनुसार, विश्वविद्यालय की सर्वोच्च इकाई सीनेट की निगरानी आवश्यक है, लेकिन अक्टूबर 2024 से सीनेट भंग है. ऐसे में इस हलफनामे की कानूनी वैधता पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं.

“छात्र आंदोलनों ने हमेशा सुधार का रास्ता” : छात्रों का कहना है कि असहमति को दबाने से लोकतंत्र मजबूत नहीं होता. 2018 में 48 दिन चले आंदोलन के बाद महिला छात्राओं को 24×7 हॉस्टल एक्सेस मिला था और 2017 में फीस वृद्धि के खिलाफ विरोध के बाद शुल्क में कटौती की गई थी. ये उदाहरण साबित करते हैं कि छात्र आंदोलनों ने हमेशा सुधार का रास्ता दिखाया है.

छात्रों की आवाज को कुचलने की कोशिश: वहीं, छात्र संघ की वाइस प्रेसिडेंट अश्मीत ने कहा, “यूनिवर्सिटी विचारों का केंद्र है, डर का नहीं. यह हलफनामा छात्रों की आवाज को कुचलने की कोशिश है.” कैंपस में अब यह बहस तेज हो गई है कि यह कदम अनुशासन की दिशा में है या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर ताला लगाने की कोशिश. पंजाब यूनिवर्सिटी एक बार फिर लोकतंत्र और नियंत्रण के बीच संतुलन की परीक्षा में खड़ी है.

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