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स्कूलों में परेशानियों का सामना कर रहे हैं कोरोना महामारी में जन्मे बच्चे

बाल रोग विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोना महामारी के समय पैदा हुए बच्चों को पिछले वर्षों की तुलना में विकास संबंधी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। विभिन्न वैज्ञानिक शोधों से यह भी पता चला है कि महामारी ने कई छोटे बच्चों के शुरुआती विकास को प्रभावित किया है। यहां उल्लेखनीय यह है कि कोरोनाकाल के दौरान पैदा हुए बच्चे अब स्कूल जाने के लायक हो गए हैं और शोधकर्ताओं के मुताबिक इनमें कई छात्र ऐसे हैं जो कि बड़ी मुश्किल से कुछ बोल पाते हैं। कई ऐसे छात्र हैं जो कक्षा में पूरे समय तक केवल चुपचाप बैठ रहते हैं जैसे उनका कुछ खो गया हो और कई तो ऐसे हैं जो पेंसिल भी सही ढ़ग से पकड़ नहीं पा रहे हैं।

उम्र के मुतरबिक विकसित नहीं हो रहा है कौशल
छोटे बच्चों की यह स्थिति दो दर्जन से अधिक शिक्षकों, बाल रोग विशेषज्ञों और नवजात के विशेषज्ञों के साथ किए गए साक्षात्कार के आधार पर कही गई है। डाउन टू अर्थ की रिपोर्ट में  विशेषज्ञों के हवाले से कहा गया है कि इसमें एक ऐसी नई पीढ़ी दिख रही है जिनमें उम्र के अनुसार कौशल विकसित नहीं हो पाया है। ये बच्चे पेंसिल पकड़ने, अपनी जरुरतों को बताने, आकृतियों और अक्षरों को पहचानने, अपनी भावनाओं को प्रदर्शित करने या साथियों के साथ अपनी समस्याओं को हल करने में सक्षम नहीं हैं।

गणित जैसे अहम विषय में पिछड़े छात्र
अमरीका के पोर्टलैंड स्थित ओरेगन हेल्थ एंड साइंस यूनिवर्सिटी के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. जैमे पीटरसन के हवाले से रिपोर्ट में कहा गया है कि कोरोनाकाल में हमने बच्चों पर मास्क पहनने, वयस्कों से न मिलने, घर के बाहर बच्चों के साथ नहीं खेलने के लिए लगातार दबाव बनाया। वास्तव में हमने उनसे उनके सभी प्रकार के संपर्कों को खत्म कर दिया। वहीं यदि बड़े बच्चों पर महामारी के प्रभाव को देखें तो उन्हें स्कूल बंद होने के दौरान घर भेज दिया गया था। ऐसे छात्र गणित जैसे अहम विषय में पिछड़ गए हैं, लेकिन जहां तक सबसे छोटे बच्चों पर प्रभाव का मामला है, कुछ मायनों में तो यह आश्चर्यजनक है।

कोरोना ने बदल दिया व्यवहार
विशेषज्ञों ने कहा कि जब महामारी शुरू हुई तो कुछ बच्चे औपचारिक स्कूल में नहीं थे। उस उम्र में बच्चे वैसे भी घर पर बहुत अधिक समय बिताते हैं। हालांकि, बच्चे के शुरुआती वर्ष उनके मस्तिष्क के विकास के लिए सबसे अहम होते हैं। शोधकर्ताओं ने कहा कि महामारी के कई कारकों ने छोटे बच्चों को प्रभावित किया है। महामारी के दौरान बच्चों ने माता-पिता में तनाव देखा है। लोगों के बीच कम संपर्क, प्री-स्कूल में कम उपस्थिति, स्क्रीन पर अधिक समय और खेलने का कम समय मिलने के कारण बच्चों के व्यवहार में बदलाव आया है।

कम आय वाले परिवारों के बच्चे ज्यादा प्रभािवित
एक जुलाई 2024 को करिकुलम एसोसिएट्स द्वारा जारी किए गए एक आंकड़ों के अनुसार अमरीका के जिन स्कूलों में ज्यादातर अश्वेत या कम आय के परिवार वाले बच्चे सबसे अधिक पीछे हैं, वहीं उच्च आय वाले परिवारों के छात्र अधिक गति से आगे बढ़ रहे हैं। हालांकि करिकुलम एसोसिएट्स में मूल्यांकन और अनुसंधान के उपाध्यक्ष क्रिस्टन हफ ने कहा कि ज्यादातर युवा छात्र भी कुछ हद तक शैक्षणिक रूप से प्रभावित हुए हैं।

बच्चों में सुधार संभव 
विशेषज्ञों ने कहा कि रिकवरी यानी सुधार संभव है, लेकिन छात्रों को ठीक होने में मदद करने के लिए स्कूलों को वितरित की गई 122 बिलियन डॉलर की संघीय सहायता का मुख्य केंद्र छोटे बच्चे नहीं रहे हैं।
प्री-स्कूल शिक्षिका फ्रेडरिक ने कहा कि इस साल आने वाले बच्चे इतने अधिक निपुण नहीं थे जितने महामारी से पहले थे। इसकेअलावा फ्लोरिडा में अपने प्री-स्कूल में लिसा ओरुरके ने बच्चों के बीच सबसे बड़ा अंतर देखा है कि अब वे उनकी भावनाओं को नियंत्रित करने में असमर्थ थीं, बच्चे कुर्सियों को गिरा रहे थे, चीजें फेंक रहे थे और अपने साथियों को मार रहे थे।

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