उत्तर प्रदेश

24 का चक्रव्यूहः कन्नौज से अखिलेश के उतरने से उलट-पलट हुआ समीकरण, नई रणनीति बनाने में जुटी भाजपा

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अंतिम दिन नामांकन कर कन्नौज सीट पर मुकाबला रोमांचक बना दिया है। लोकसभा चुनाव के लिए कन्नौज में मतदान को अब 15 दिन शेष हैं। 29 अप्रैल को नाम वापसी व चुनाव चिन्ह आवंटन के बाद मैदान में डटे 'शूरवीरों' की तस्वीर...

कन्नौजः समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अंतिम दिन नामांकन कर कन्नौज सीट पर मुकाबला रोमांचक बना दिया है। लोकसभा चुनाव के लिए कन्नौज में मतदान को अब 15 दिन शेष हैं। 29 अप्रैल को नाम वापसी व चुनाव चिन्ह आवंटन के बाद मैदान में डटे ‘शूरवीरों’ की तस्वीर स्पष्ट हो जाएगी। लेकिन लंबे इंतजार के बाद नामांकन के अंतिम दिन सपा अध्यक्ष के पर्चा भरने के बाद क्षेत्र में चुनावी समीकरणों में भारी उलट-पुलट हो गया है। बताया जा रहा है कि ‘कमल’ से खफा व्यापारियों तथा कई अन्य तबकों की नाराजगी भाजपा को भारी पड़ सकती है। यद्यपि मैदान में ‘हाथी’ भी है जो किसी का खेल बनाएगा तो किसी का बिगाड़ने का काम करेगा।

कन्नौज से लगातार तीन बार चुनाव जीत चुके हैं अखिलेश यादव
वर्ष 1999 में समाजवादी पार्टी अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने कन्नौज से चुनाव लड़ा और जीता था। इसके बाद इस सीट से इस्तीफा देकर तब राजनीति का कखग सिखाने के लिए बेटे अखिलेश उर्फ टीपू को यहां की जनता के सुपुर्द किया था। जनता ने भी उन्हें हाथो हाथ लिया और भारी बहुमत से जीत दिलाकर संसद पहुंचा दिया। तब लड़कपन की आयु थी और राजनीति का नया नया मैदान था लेकिन अब वह मंझे हुए राजनीतिज्ञ हो चुके हैं। कहां नफा होगा कहां नुकसान और कौन सा दांव कब चलना है यह भी अच्छी तरह से जानते हैं। तभी तो तमाम गुणा भाग लगाने के बाद अंतिम समय में अपनी ‘प्राइमरी पाठशाला’ से चौथी बार ताल ठोंककर ‘धमाका’किया। वर्ष 2000 से लगातार तीन लोकसभा चुनाव में वे यहां से भारी बहुमत से सांसद चुने गए थे। गत चुनाव में सीट सपा के हाथ से जाने के बाद यह टीस साल ही रही थी तो दूसरी तरफ से भाजपा प्रत्याशी की लगातार चुनौतियां और ललकार भी सामने थी। शायद यही वजह रही कि ऊहापोह का दौर एक महीने से भी ज्यादा चला लेकिन तय रणनीति के तहत अगला कदम लिया।

मैदान में अखिलेश के उतरने से नई रणनीति बनाने में जुटी भाजपा 
अब सत्ता दल के सूत्र ही बता रहे हैं कि तेज प्रताप यदि प्रत्याशी होते तो भाजपा की राह खासी आसान थी। इसका कारण यह था कि लोगों के सामने कोई विकल्प ही नहीं बच रहा था। ऐसी खबरें भी सपा सुप्रीमो तक पहुंचीं थीं। यह भी कि यदि वे आते हैं तो टक्कर होगी और परिणाम सकारात्मक होने के आसार ज्यादा बनेंगे। अब जब भाजपा-सपा आमने-सामने के रण में डट चुके हैं तो सत्ताधारी दल का खेमा नई रणनीति बना रहा है। सत्ता दल के सूत्र बता रहे हैं कि भाजपा द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर उठाए गए कुछ ऐसे कदम जिनसे व्यापार को धक्का पहुंचा है, से व्यापारियों का एक वर्ग नाराज है। इसके साथ ही मौजूदा सांसद व प्रत्याशी के प्रति भी गुस्सा भी है। ऐसे में मौन’ वोट के दिन बड़ा जवाब दे सकता है। एक व्यापारी ने बातचीत में साफ कहा कि हम तो भाजपा के ही समर्थक रहे हैं लेकिन कारोबार में जीएसटी की विसंगति, ऑनलाइन खुदरा व्यापार ने तबाह कर दिया है।

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