24 का चक्रव्यूहः मोदी की गारंटी को भुनाने में लगी साध्वी निरंजन ज्योति, सपा-बसपा उम्मीदवारों ने मुकाबले को बनाया त्रिकोणीय
दोआबा की धरती पर इस बार लोकसभा चुनाव में लगातार तीन बार जीतने का इतिहास बनेगा या किसी नए चेहरे को दिल्ली पहुंचने का मौका मिलेगा यह तो मतगणना के बाद पता चलेगा। फिलहाल यहां लड़ाई कांटे की हो गई है।
फतेहपुर: दोआबा की धरती पर इस बार लोकसभा चुनाव में लगातार तीन बार जीतने का इतिहास बनेगा या किसी नए चेहरे को दिल्ली पहुंचने का मौका मिलेगा यह तो मतगणना के बाद पता चलेगा। फिलहाल यहां लड़ाई कांटे की हो गई है। बसपा ने पहले से ही कुर्मी जाति से आने वाले डॉ. मनीष सचान को उम्मीदवार बना रखा था अब सपा ने भी इसी जाति के नरेश उत्तम पटेल को मैदान में उतार दिया है। नरेश उत्तम पटेल समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष हैं। उन्हें अखिलेश यादव के पीडीए से जुड़ी जातियों पर भरोसा है तो केंद्र सरकार में मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति को भी मोदी की गारंटी पर विश्वास है। सपा और बसपा से कुर्मी जाति के उम्मीदवार मैदान में आने को भाजपाई साध्वी के लिए मुफीद मान रहे हैं। उन्हें लगता है कि वोटों के बंटवारे में यह सीट आसानी से निकल जाएगी।
विरोधी दल मतदाताओं को कर रहे गुमराह
केंद्रीय ग्रामीण विकास राज्यमंत्री साध्वी निरंजन ज्योति खुद के कराए हुए विकास कार्यों और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गारंटी को भुनाने में लगी हैं। वह एक स्वर में अपनी उपलब्धियों को गिनातीं हैं और यह भी बताना नहीं भूलतीं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ही अयोध्या में भव्य श्रीराम लला का मंदिर बनवाया और वहां पर उनकी प्राण प्रतिष्ठा की। संविधान बदलने के विरोधी दलों के दावों पर वह सफाई भी देतीं हैं और कहती हैं कि विरोधी दल मतदाताओं को गुमराह कर रहे हैं। साध्वी रात-दिन क्षेत्र का भ्रमण कर रही हैं। सुबह होते ही क्षेत्र में जनसंपर्क के लिए निकल रहीं और देर रात लौट रहीं हैं। इसी तरह बसपा के डॉ. मनीष सचान भी बसपा की सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय की नीति का बखान कर वोट मांग रहे हैं। सपा में अब उहापोह की स्थिति खत्म हो गई है। देर से ही सही सपा ने नरेश उत्तम पटेल को प्रत्याशी बनाकर मतदाताओं और नेताओं को एकजुट रखने का प्रयास किया है। साथ ही कुर्मी मतदाताओं को भी साधने की कोशिश की है। सपा को उम्मीद है कि सत्ता से नाराज लोग उसे वोट तो करेंगे ही अल्पसंख्यक, दलित और पिछड़ा वर्ग के मतदाताओं के दम पर इस चुनाव को पार्टी जीत लेगी।
भाजपा में अंतरकलह की कहानी भी है
भाजपा में अंतरकलह भी साफ दिखती है। दो बड़े नेता ऐसे हैं जो खुलकर कुछ नहीं बोल रहे हैं लेकिन उनकी नाराजगी का असर समर्थकों से बातचीत में सामने दिख जाता है। हालांकि साध्वी निरंजन ज्योति हर किसी को साथ लेकर चलने की कोशिश में लगी हुई हैं। जो नाराज हैं उन्हें भी मनाने का प्रयास चल रहा है। सपा से पूर्व सांसद अशोक कुमार पटेल टिकट के प्रबल दावेदार थे लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिला। ऐसे में उनके नाराज होने की बात कही जा रही है पर अभी तक पैसा कुछ सामने नहीं आया। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष को टिकट मिलने के बाद तो किसी अंतरकलह की बात यहां बेमानी नजर आ रही है। 1998 के चुनाव में बीजेपी ने यहां से जीत दर्ज की थी। तब अशोक कुमार पटेल जीते थे। इसके बाद 1999 वे लगातार दूसरी बार भी भाजपा से जीते थे।
तीन चुनावों में दूसरे नंबर पर रही बसपा
इस संसदीय सीट पर बसपा दो बार जीत चुकी है। पहली बार 1996 में विश्वंभर प्रसाद निषाद और र दूसरी बार 2004 में महेंद्र प्रसाद निषाद यहां से सांसद बने थे। 2009, 2014 और और 2019 के चुनाव में तो बसपा दूसरे नंबर पर रही। ऐसे में पार्टी को लगता है कि अगर वह अपने परंपरागत मतदाताओं को एकजुट करने में सफल हुई और दूसरे दलों के वोट में सेंधमारी कर पाई तो उसके उम्मीदवार डॉ. मनीष सचान की जीत पक्की है। सपा ने 2009 में इस सीट को जीता था। तब राकेश सचान ने यहां बसपा के उम्मीदवार को हराया था। भाजपा को इस चुनाव में तीसरे स्थान पर संतोष करना पड़ा था। अब राकेश सचान भाजपा में हैं और प्रदेश सरकार में मंत्री हैं। उनका प्रभाव भी यहां के सजातीय मतदाताओं में है। इसे भी भाजपा अपने लिए मुफीद मानती है।