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महाराजा सूरजमल ने 80 युद्ध लड़े और कभी पराजित नहीं हुए: सौरोत

महाराजा सूरजमल का बलिदान दिवस शौर्य दिवस के रूप में मनाया गया

होडल (रतन सिंह): ऐतिहासिक सती सरोवर पर महाराजा सूरजमल के 261वें बलिदान दिवस पर श्रद्धांजलि अर्पित कर उनके बलिदान दिवस को शौर्य दिवस के रूप मे मनाया गया। बलिदान दिवस कार्यक्रम की अध्यक्षता एडवोकेट महाराम रावत ने जबकि संचालन देवेंद्र नंबरदार ने किया।
इस अवसर पर आवाज एक शुरूआत से लखवीर सौरोत, भाजपा नेता यशवीर सिंह, सोनू गुप्ता, दिनेश पांचाल, सुनील ठेकदार, उत्तम भारद्वाज , हरकेश सौरोत, मास्टर शिवराम सिंह, धीरज चौहान सहित काफ़ी संख्या में समाज के लोग मौजूद रहे। महाराजा सूरजमल सभी वर्गों के हितैषी और आदर्श थे। उन्होंने गरीब कमज़ोर और जुल्म के खिलाफ़ लड़ाइयां लड़ते हुए शहीदी प्राप्त की। उन्होंने अपने जीवनकाल में 80 युद्ध लड़े और कभी पराजित नहीं हुए। उनकी बहादुरी की मिसाल इतिहास की किताबों में दर्ज है। उन्होंने 1743 में भरतपुर नगर की नींव रखी। उनके क्षेत्र में भरतपुर के अतिरिक्त आगरा, धौलपुर, मैनपुरी, हाथरस, अलीगढ़, इटावा, मेरठ, रोहतक, मेवात, रेवाड़ी, गुडग़ांव और मथुरा सम्मिलित थे। वह एक योद्धा के साथ साथ दूरदर्शी और कूटनीतिक सोच रखने वाले राजा थे। इसी दूरदर्शी सोच के कारण ही उन्होंने मराठा सेनापति को सलाह दी थी जनवरी के महीने का मौसम आपके अनुकूल नहीं है इस समय उत्तर भारत में कड़ाके की ठंड पड़ती है तथा सेना के साथ आई महिलाओं और बच्चों को भी आपको डीग के किले में छोडऩा चाहिए। इसके साथ ही महाराज ने मुगलों को इस युद्ध में अपने साथ मिलाने का भी सुझाव दिया था। महाराज सूरजमल ने इस युद्ध को रणनीति से जीतने के कई सुझाव दिए थे, लेकिन मराठाओं के साथ हुए इस मतभेद ने भारत को एक ऐसे युद्ध में झोंक दिया कि देश को लगभग 200 सालों तक अंग्रेजी हुकूमत का शासन झेलना पड़ा। महाराजा सूरजमल की इसी दूरदर्शी सोच के कारण उन्हें एशिया का प्लूटो भी कहा जाता है। राजस्थान के लोहगढ़ किले का निर्माण उन्होंने इस तरीके से किया कि आज तक भी कोई उसे भेद नहीं पाया। अंग्रेजों और मुगलों ने वहां पर 13 बार आक्रमण किया, लेकिन लोहागढ़ किले की दीवारों ने अंग्रेजों के तोप के गोलों और हथियारों को निरस्त कर दिया और उन्हें हर बार मुंह की खानी पड़ी। महाराजा सूरजमल का विवाह होडल के चौधरी काशीराम की पुत्री महारानी किशोरी के साथ हुआ था। उन्होनें होडल में कचहरी और बारह खंभा छतरी का निर्माण करवाया था। वीरों की सेज युद्धभूमि ही है। 25 दिसम्बर 1763 को युद्ध मे नवाब नजीबुदौला ने धोखे से महाराजा सूरजमल की हत्या कर दी।

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