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BMC चुनाव: MVA की नाकामी, राज और उद्धव का गठबंधन बीजेपी के सामने

भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेतृत्व वाले गठबंधन महायुति को टक्कर देने में महाविकास अघाड़ी (MVA) नाकाम रहा है. विधानसभा और लोकसभा के चुनावों में शिवसेना (UBT), कांग्रेस और NCP ( शरद पवार गुट) का ये गठबंधन महायुति के सामने टिक नहीं पाया. लगातार असफलताओं के बाद इसके भविष्य पर भी सवाल है. इसी बीच, उद्धव और राज ठाकरे साथ आ रहे हैं. BMC चुनाव से पहले दोनों ने एक मंच पर आने का फैसला किया है.

15 जनवरी को BMC चुनाव के लिए वोट डाले जाएंगे. उससे पहले आज यानी बुधवार को उद्धव और राज ठाकरे एकसाथ आने का औपचारिक ऐलान करेंगे. शिवसेना (UBT) के सांसद संजय राउत ने कहा, सेना (UBT) और MNS गठबंधन की घोषणा बुधवार को मुंबई में उद्धव और राज करेंगे. उन्होंने यह भी कहा कि दोनों पक्षों के बीच बातचीत आसानी से आगे बढ़ी है, जिससे औपचारिक घोषणा का रास्ता साफ हो गया है.

बीजेपी के लिए कितनी बड़ी चुनौती?

हाल के लोकल बॉडी चुनावों में बीजेपी ने अच्छा प्रदर्शन किया था. उसके नेतृत्व वाले महायुति ने 288 लोकल बॉडी में से 207 पर जीत हासिल की. इसके बावजूद बीजेपी के लिए BMC चुनाव आसान नहीं होगा. राजनीतिक जानकारों का कहना है कि दोनों ठाकरे एकसाथ आते हैं, तो मराठी वोटों में बंटवारे से बचा जा सकता है. ठाकरे भाई मराठी मानुष के मुद्दे को ही आगे बढ़ाते हैं.

जानकार कहते हैं कि जब भी कोई नया गठबंधन बनता है, तो उसका कुछ असर तो होता ही है. ठाकरे परिवार के फिर से एक होने से कुछ उत्साह पैदा होने की संभावना है, खासकर जब वे मराठी और मुस्लिम वोटबैंक को लुभाने पर ध्यान दे रहे हैं.

ठाकरे भाइयों का मेन वोटबैंक मराठी बोलने वाले लोग माने जाते हैं. ये मुंबई की आबादी का लगभग 26% हैं. मुसलमानों की आबादी भी 15 से 18 फीसदी है. इसी के आसपास दलितों की आबादी है. गैर-बीजेपी ताकतों के साथ जाने की संभावना है, इसलिए बीजेपी के पास चिंता करने की वजहें हैं.

वार्ड के हिसाब से क्या कहते हैं आंकड़े?

आंकड़ों के हिसाब से नवंबर 2024 के विधानसभा चुनावों में खराब प्रदर्शन के बावजूद उद्धव और राज मिलकर एक बड़ी राजनीतिक ताकत बनते हैं. असेंबली चुनावों के वार्ड-वार ब्रेकअप से पता चलता है कि शहर के 227 BMC वार्डों में से 67 वार्डों में यानी 30% वार्डों में MNS को जीत के अंतर से ज़्यादा वोट मिले. जबकि विपक्षी गठबंधन महाविकास अघाड़ी (MVA) इन 39 वार्डों में आगे था. वहीं महायुति 28 वार्डों में आगे था.

जानकार कहते हैं कि MNS के साथ गठबंधन करने से शिवसेना की न सिर्फ इन 39 वार्डों में स्थिति मज़बूत होगी, बल्कि वो उन वार्डों में भी जीत हासिल कर सकती है जहां सत्ताधारी गठबंधन आगे था. इन वार्डों की ज्योग्राफी को करीब से देखने पर पता चलता है कि MNS की ताकत वर्ली, दादर, माहिम, घाटकोपर, विक्रोली और दिंडोशी-मलाड तक फैले मराठी बेल्ट में है, जहां उसके उम्मीदवारों को MVA उम्मीदवारों को मिले वोटों का एक-तिहाई से आधा वोट मिला.

MNS का असर 123 वार्डों में देखा गया. यह दिखाता है कि कम वोट शेयर (2024 के विधानसभा चुनावों में 25 सीटों से 4%) के बावजूद मुंबई की राजनीतिक भूगोल में उसका प्रभाव है. उद्धव के लिए यह हिसाब एक ऐसी रणनीति में बदल जाता है, जहां कुछ सौ वोट भी एक वार्ड का नतीजा तय कर सकते हैं. MNS के साथ गठबंधन वोटों के ट्रांसफर को पक्का कर सकता है, जिससे बिखरे हुए मराठी वोटर्स एक साथ आ सकते हैं.

ठाकरे के गठबंधन से बीजेपी को अपने सहयोगी एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना पर ज़्यादा निर्भर रहना पड़ सकता है. खासकर BMC, ठाणे, कल्याण-डोंबिवली, नासिक, पुणे और नवी मुंबई जैसे नगर निगमों में जहां मराठी बोलने वाली आबादी ज़्यादा है.

क्यों हुए थे दोनों अलग?

उद्धव और राज दोनों अपनी राजनीति में मराठी मानुष को ही केंद्र में रखते हैं. यह वही मुद्दा है जिसका इस्तेमाल बाल ठाकरे ने 1966 में शिवसेना को स्थापित करने के लिए किया था. 2006 में राज ने शिवसेना से अलग होने का फैसला किया था और अलग पार्टी बनाने का ऐलान किया. अब 20 साल बाद वह शिवसेना के साथ आ रहे हैं.

BJP के नेतृत्व वाली महायुति सरकार का प्राइमरी स्कूलों में हिंदी थोपने का फैसला ही वह वजह थी जिसके कारण दोनों ठाकरे इस फैसले का विरोध करने के लिए एक साथ आए. इसके बाद राज और उद्धव ठाकरे को लगा कि BMC को बनाए रखने और दूसरे नगर निगम चुनावों में सत्ता हासिल करने के लिए उनके गठबंधन को चुनावों के लिए और आगे बढ़ाना चाहिए. दोनों ने अपनी एकजुटता की गंभीरता और अहमियत को समझा.

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