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बांगर की बेटी पुलकित कंदोला ने जीता गोल्ड, गांव में खुशी का माहौल, लड्डू बांटकर मनाई खुशी

जार्डन में आयोजित हो रही अंडर-17 विश्व चैम्पियनशिप में उचाना हलके के बुडायन गांव की पुलकित कंदोला ने 65 किलोग्राम फ्रीस्टाइल में गोल्ड मेडल जीता है। फाइनल मुकाबले में पुलकित ने रसिया की पहलवान को 6-3 से पटखनी देते हुए गोल्ड मेडल अपने नाम किया।

जार्डन में आयोजित हो रही अंडर-17 विश्व चैम्पियनशिप में उचाना हलके के बुडायन गांव की पुलकित कंदोला ने 65 किलोग्राम फ्रीस्टाइल में गोल्ड मेडल जीता है। फाइनल मुकाबले में पुलकित ने रसिया की पहलवान को 6-3 से पटखनी देते हुए गोल्ड मेडल अपने नाम किया। पुलकित ने दो साल पहले किर्गिस्तान में आयोजित एशियन चैंपियनशिप में भी भाग लिया था और उस दौरान उसके घुटने में चोट लग गई। इसके बावजूद भी वो खेलती रही और सिल्वर मेडल जीता, लेकिन इस बार पुलकित ने सिल्वर को गोल्ड में बदल दिया।

उचाना हलके के गांव बुडायन में साधारण किसान प्रभात कंदौला के घर जन्मी लड़की ने देश ही नहीं बल्कि पूरे हल्के का नाम रोशन करने का काम किया है। पुलकित ने जॉर्डन में चल रही अंडर 17 वर्ल्ड रेसलिंग चैंपियनशिप में 65 किलोग्राम भाग वर्ग में जीता गोल्ड मेडल। पुलकित के पिता किसान है। जो अपनी खेती बाड़ी का काम करते है। उन्होंने अपनी बेटी की प्रतिभा को देखते हुए कुश्ती के मैदान में ले जाने का संकल्प लिया और एक अपना देखा की एक दिन उसकी बेटी देश के लिए गोल्ड मेडल लाएगी। आज उस लड़की पुलकित ने देश का नाम रोशन करते हुए जॉर्डन में चल रही अंडर 17 वर्ल्ड रेसलिंग चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीता है।

पुलकित के कोच धर्मराज ने कहा कि वो पुलकित के सौभाग्य से दादा है और आज उन्होंने अंडर 17 वर्ल्ड रेसलिंग चैंपियनशिप में जो गोल्ड मेडल जीता है उससे पूरा गांव  ही नहीं पूरे देश में खुशी का माहौल है। पुलकित के पिता एक किसान है जो अपनी किसानी का कार्य करते हैं। मैंने उनकी प्रतिभा को देखा और  उनके परिवार को कुश्ती के लिए राजी किया और पुलकित ने बड़ी मेहनत और लगन के साथ आज उसे मुकाम को हासिल किया।

पुलकित के दादा करण सिंह ने कहा कि मेरी पोती ने जो आज गोल्ड मेडल जीता है उसे पूरे घर ही नहीं पूरे गांव पूरे हल्के में खुशी का माहौल है ।मेरी पोती ने गोल्ड मेडल जीता हमें इस बात की बड़ी खुशी हुई। वो तो भी पढ़ाई कर रही है और उसके पिता एक साधारण किसान है। उसकी खाने को लेकर कोई खास डिमांड नहीं रहती थी। जो घर पर बना होता। उसे बड़ी खुशी के साथ खा लेती है।

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