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संदेशखाली, भूपतिनगर के बाद अब रामनवमी में हिंसा, लोकसभा चुनाव से पहले बंगाल में क्यों मचा बवाल?

देश की 543 लोकसभा सीटों के साथ ही पश्चिम बंगाल में तीन लोकसभा सीटों जलपाईगुड़ी, अलीपुरद्वार और कूचबिहार पर शुक्रवार को मतदान होगा, लेकिन मतदान के पहले बंगाल की सियासत गरमा गई है. लोकसभा चुनाव से करीब छह माह पहले बंगाल के संदेशखाली में महिलाओं पर अत्याचार और ईडी अधिकारियों पर हमला, फिर भूपतिनगर में सीबीआई अधिकारियों पर हमला और अब रामनवमी में हिंसा का मुद्दा गरमा गया है. राज्य में सत्तारूढ़ पार्टी तृणमूल कांग्रेस केंद्र सरकार पर राज्य के मामले में हस्तक्षेप करने का आरोप लगा रही है, तो बीजेपी चुनाव के पहले इन मुद्दों को बिगड़ी कानून-व्यवस्था हवाला देकर ममता बनर्जी की सरकार पर हमला बोल रही है.

हालांकि पश्चिम बंगाल के लोकसभा चुनाव में त्रिकोणीय मुकाबला है. टीएमसी, बीजेपी के साथ ही वाममोर्चा और कांग्रेस चुनावी मैदान में हैं. ऐसे में इन मुद्दों से एक ओर टीएमसी तो दूसरी ओर बीजेपी चुनाव प्रचार को कुछ मुद्दों पर ध्रुवीकरण करने की कोशिश कर रहे हैं और लेफ्ट और कांग्रेस चुनाव प्रचार और मुद्दों पर हाशिये पर ढ़कलने की कोशिश कर रहे हैं.

बता दें कि पिछले लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव में मुकाबला टीएमसी और बीजेपी के बीच ही हुआ था. 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को केवल दो सीटों से संतोष करना पड़ा था, जबकि लेफ्ट को निराशा हाथ लगी थी. वहीं, 2021 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और लेफ्ट का खाता भी नहीं खुला था.

चुनाव से ठीक पहले फिर बन गए ये मुद्दे

ऐसा नहीं है कि ये मुद्दे नए हैं. टीएमसी नेताओं के भ्रष्टाचार में शामिल होने का मुद्दा और ईडी और सीबीआई अधिकारियों की छापेमारी विधासनभा चुनाव से पहले भी हो चुकी है. लेकिन चुनाव के कुछ माह पहले ही ईडी संदेशखाली में टीएमसी नेता शाहजहां शेख के घर पर छापेमारी करने गई और हमले का शिकार हुई. स्थानीय महिलाओं ने टीएमसी नेताओं के खिलाफ उग्र प्रदर्शन किया और यह बड़ा मुद्दा बन गया. उसी तरह से दो साल पहले भूपतिनगर में बम ब्लास्ट हुए थे. बम ब्लास्ट के मामले की तहकीकात करने गई सीबीआई की टीम पर हमला किया गया है और अब रामनवमी को लेकर बंगाल की सियासत गरमा गई है.

पिछले साल भी रामनवमी के अवसर पर बंगाल के हुगली और हावड़ा जिले में हिंसा की घटनाएं घटी थी. कई दिनों तक हावड़ा का उलुबेरिया और हुगली का रिसड़ा हिंसा की आग में जलता रहा था. बीजेपी ने इसे बड़ा मुद्दा बनाया था. साल के आरंभ में अयोध्या में राम मंदिर में राललला की प्राण प्रतिष्ठा की गई. बीजेपी ने राममंदिर के निर्माण और रामलला की प्राण प्रतिष्ठा को भारतीय संस्कृति के साथ जोड़ा और विपक्षी पार्टियों के शामिल नहीं होने को मुद्दा बनाया, ऐसे में बंगाल में टीएमसी ने बीजेपी के राममंदिर के मुद्दे को टक्कर देने के लिए खुद भी रामनवमी से जोड़ लिया.

बंगाल में पहली बार सीएम ममता बनर्जी ने रामनवमी पर सरकारी अवकाश का ऐलान किया. टीएमसी के उम्मीदवार चाहे अभिनेता देव हों या फिर शताब्दी रॉय रामनवमी के जुलूस में श्रीराम के रंग में रंगे नजर आये. बीजेपी ने राम मंदिर का मुद्दा बनाने की कोशिश की, तो टीएमसी भी रामनवमी के मुद्दे को हैक करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. हावड़ा सहित कई इलाकों में बीजेपी ने रामनवमी के मुद्दे पर हथियारों के साथ जुलूस निकाला, तो मुर्शिदाबाद के रेजीनगर और मेदिनीपुर में रामनवमी में हिंसा की घटनाएं घटीं और पूरा चुनाव प्रचार रामनवमी में हुई हिंसा के ईद-गिर्द सिमट गई.

रामनवमी पर हिंसा ने फिर बना मुद्दा

सीएम ममता बनर्जी ने आरोप लगाया कि बीजेपी ने जानबूझ कर रामनवमी पर हिंसा भड़काई है. रायगंज में चुनावी सभा को संबोधित करते हुए ममता बनर्जी ने सवाल किया कि लोग रामनवमी के रैली में हथियार लेकर क्यों गए? भाजपा से पूछना चाहती हूं कि रामनवमी के ठीक एक दिन पहले आपने DIG को क्यों हटाया? क्या इस मंशा से कि रामनवमी के दिन ये लोग हुड़दंग कर सकें? मेरे पास लोगों के घायल होने की तस्वीरें हैं. बता दें कि दो दिन पहले मुर्शिदाबाद के डीआईडी का तबादला चुनाव आयोग ने कर दिया था. ममता बनर्जी इसके पीछे बीजेपी की साजिश करार दे रही है, तो दूसरी ओर, बीजेपी ने फिर से बिगड़ी कानून व्यवस्था और हिंदू धर्म पर हमले को मुद्दा बनाते हुए ममता बनर्जी की सरकार पर हमला बोलते हुए रामनवमी में हिंसा की मांग एनआईए से कराने की मांग की है. इस तरह बंगाल में चुनाव को पहले धर्म को लेकर सियासत पूरी तरह से गरमा गई है.

ध्रुवीकरण की बीजेपी-टीएमसी की कोशिश

राजनीतिक विश्लेषक पार्थ मुखोपाध्याय कहते हैं कि ममता बनर्जी को यह आभास होने लगा है कि भ्रष्टाचार का मुद्दा बड़ा बनता जा रहा है. भ्रष्टाचार के मामले पर उनकी सरकार घिर रही है और चुनाव में इसका प्रभाव पड़ सकता है. इस कारण ममता बनर्जी ने परसों मुर्शिदाबाद से डीआईजी का मुद्दा उठाकर रामनवमी में हिंसा की सफाई देने की कोशिश की, लेकिन यह सवाल है कि डीआईजी के तबादले से ही कानून व्यवस्था की स्थिति गड़बड़ा गई है. कानून व्यवस्था संभालने में लगे एसपी, ओसी और आईसी क्या कर रहे थे? इससे साफ है कि ममता बनर्जी की मंशा हिंसा के मुद्दे पर बीजेपी को कटघरे में खड़ा करना है और इसे एक मुद्दा बनाना है.

ममता को बीजेपी दे रही कड़ी चुनौती

बता दें कि पश्चिम बंगाल की कुल 42 लोकसभा सीटों में से पिछले लोकसभा चुनाव 2019 में बीजेपी ने पहली बार 18 सीटों पर जीत हासिल कर ममता बनर्जी को कड़ी चुनौती दी है. इस बार बीजेपी 30 से अधिक सीटों पर जीत का दावा कर रही है. लेफ्ट और कांग्रेस ममता बनर्जी से अलग चुनाव लड़ रहे हैं. ऐसे में मुस्लिम वोटों के बंटने का खतरा है. ऐसे में रामनवमी में हिंसा के मुद्दे पर चुनाव को दो ध्रवों में बांटने की कोशिश शुरू हो गई है, जो पूरी तरह से बीजेपी और ममता बनर्जी को फायदा पहुंचा सकता है, हालांकि यह चुनाव परिणाम से ही साफ होगा कि ऊंट किस करवट बैठता है और बाजी किसके हाथ लगती है.

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