धर्म/अध्यात्म

जानें वो तिथियाँ जब घर में रोटी बनाना माना जाता है अशुभ—हो सकती है आर्थिक परेशानी

भोजन सिर्फ पेट की आवश्यकता ही नहीं, बल्कि अन्न को देवी अन्नपूर्णा का रूप माना गया है. भोजन को समृद्धि के रूप में देवी लक्ष्मी का रूप माना जाता है. वास्तु शास्त्र में घर में भोजन बनाने के कुछ विशेष नियम बताए गए हैं. भोजन बनाते समय घर का वातावरण शुद्ध और पवित्र होना चाहिए, तभी भोजन शुभ फल देता है.

हालांकि, वास्तु शास्त्र में कुछ तिथियों पर घर में रोटी बनाने से मना किया गया है. आइए वास्तु शास्त्र के अनुसार, जानते हैं कि आखिर किन तिथियों पर घर में रोटी नहीं बनानी चाहिए.

शीतला अष्टमी

शीतला अष्टमी बहुत पावन और महत्वपूर्ण मानी जाती है. इसे बसौड़ा भी कहते हैं. इस दिन माता शीतला को ठंडे यानी बासी भोजन का भोग लगाया जाता है. मान्यताओं के अनुसार, इस दिन घर में चूल्हा नहीं जलाना चाहिए. इसलिए इस दिन घर में भोजन या रोटी बनाना वर्जित किया गया है. इस दिन माता को चढ़ाया बासी भोग ही परिवार के साथ खाया जाता है.

दिवाली

दिवाली हिंदू धर्म का सबसे शुभ त्योहर माना जाता है. मान्यता है कि इस दिन हर घर में माता लक्ष्मी आती हैं, इसलिए इस दिन रोटी की बजाय विशेष पकवान बनाए जाते हैं. माना जाता है कि दिवाली पर रोटी बनाना माता लक्ष्मी को अप्रसन्न कर सकता है, इसलिए लोग दिवाली पर खीर, पोड़ी, मालपुए और अन्य विशेष व्यंजन पकाकर मां से कृपा और समृद्धि की कामना करते हैं.

श्राद्ध

श्राद्ध के दिनों में भी घर में रोटी नहीं बनानी चाहिए. ये तिथियां पितरों को याद और उनका सम्मान करने के लिए है, इसलिए साधारण भोजन के बजाय पितरों के लिए विशेष पकवान बनाए जाते हैं और श्रद्धा से उनको अर्पित किए जाते हैं. मान्यता है कि इस दिन बनाया गया भोजन सीधे पितरों तक पहुंचता है, जिससे उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है.

शरद पूर्णिमा

शरद पूर्णिमा के दिन भी घर में रोटी बनाने से माना किया जाता है. शरद पूर्णिमा का दिन देवी लक्ष्मी के प्राकट्य का माना जाता है. मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा अमृत वर्षा करके भोजन में दिव्यता घोलता है. इस दिन रोटी बनाने से शुभता कम होती है. जीवन में आर्थिक तंगी आ सकती है, इसलिए इस दिन खीर और पूड़ी का भोग माता को लगाया जाता है.

मृत्यु होने पर

वास्तु शास्त्र के अनुसार घर में किसी की मृत्यु होने के बाद रोटी नहीं बनानी चाहिए. मान्यता है कि ऐसा करने से अन्न अपवित्र हो जाता है. मृत्यु के समय में घर का वातावरण शोक से भरा होता है, इसलिए इस दौरान अन्न पकाना और ग्रहण करना दोनों उपयुक्त नहीं माना जाता.

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