जबलपुर के विनूभाई से बने वैश्विक गुरु, अद्भुत है महंत स्वामी महाराज की आध्यात्मिक यात्रा

संस्कारधानी जबलपुर की पावन धरती पर जीवन उत्कर्ष महोत्सव का भव्य आगाज हो चुका है. ये दिव्य महोत्सव 3 से 7 नवंबर तक चलेगा. यह वही पावन धरा है, जहां परम पूज्य महंत स्वामी महाराज का जन्म हुआ था. 13 सितंबर 1933 को उनका जन्म हुआ था और वो आगे चलकर विश्वव्यापी BAPS स्वामीनारायण संस्था के आध्यात्मिक अधिष्ठाता और लाखों हृदयों के प्रेरणास्रोत गुरु बने.
हिंदू शास्त्रों में कहा गया है, ‘संप्रदायों गुरु क्रमः’ मतलब किसी भी सच्चे संप्रदाय की पहचान उसकी गुरु परंपरा से होती है. यह परंपरा भगवान श्री स्वामिनारायण से शुरू होकर आज छठे आध्यात्मिक उत्तराधिकारी प्रकट ब्रह्मस्वरूप परम पूज्य महंत स्वामी महाराज तक अविच्छिन्न रूप से प्रवाहित है.
विद्यार्थी जीवन की झलकियां
महंत स्वामी महाराज का पूर्वाश्रम नाम था विनूभाई. बाल्यकाल से ही उनमें शांति, सज्जनता और ज्ञान की प्यास का अद्भुत संगम दिखाई देता था.
पठन की लगन और एकांतप्रियता
विनूभाई को पुस्तकों से अथाह प्रेम रहा. वह अक्सर पास के बगीचे या चांदनी रात में भी पढ़ते रहते. उनकी एकाग्रता इतनी अद्भुत थी कि कक्षा में सुना हुआ पाठ स्मृति में अंकित हो जाता. घर लौटकर उन्हें दोबार पढ़ने की जरूरत नहीं पड़ती.
निडर और अनुशासित
स्कूल जाते समय एक बड़ा नाला पड़ता था, जहां बाकी बच्चों को अभिभावक छोड़ने आते, वहीं, निडर विनूभाई अकेले ही पार करते. बचपन से ही आत्मविश्वास और निर्भीकता उनके स्वभाव में थी.
बहुभाषी प्रतिभा और तीव्र स्मरणशक्ति
घर में गुजराती, बाहर हिंदी और स्कूल में अंग्रेजी, तीन भाषाओं के माहौल में भी उनकी पकड़ हर विषय पर अद्भुत थी. तीसरी कक्षा में याद की हुई कविताएं आज भी उन्हें कंठस्थ हैं. उनकी प्रिय पंक्ति रही- ‘He that is down need fear no fall, he that is humble ever shall have God to be his guide’.
शिक्षा और पुरस्कार
महंत स्वामी महाराज ने जबलपुर के क्राइस्ट चर्च बॉयज़ हाई स्कूल से सीनियर कैम्ब्रिज तक की शिक्षा पूर्ण की. 5वीं कक्षा में पहला स्थान पाकर उन्होंने जो पुरस्कार चुना वह था एक पुस्तक. ज्ञान के प्रति उनकी निष्ठा का यह सबसे सुंदर प्रमाण रहा.
कला-सूझ और अनासक्ति
उनकी कला-सूझ भी अत्यंत निराली रही. स्कूल में सुंदर चित्र बनाना उनकी आदत थी. वह कहा करते थे- मैं चित्र तो बनाता हूं, पर चित्रकला में करियर बनाने का कभी विचार नहीं आया. जो चित्र या कलाकृति बनाई, उसे बाद में भूल जाना ही मेरा नियम था क्योंकि सच्ची कला आसक्ति नहीं, आत्मशांति का माध्यम है.
खेलकूद और सौम्य स्वभाव
फुटबॉल उनका प्रिय खेल था. लेफ्ट फुल बैक पोजीशन पर उनका कौशल सबका ध्यान खींचता था. वह सदैव शांत, मुस्कुराते और आत्मीयता से भरे रहते, सभी सहपाठियों के प्रिय.
प्रिंसिपल की भविष्यवाणी
उनके स्कूल प्रिंसिपल रॉबिन्सन अक्सर कहा करते- विनूभाई, आप भविष्य में एक महान धर्मगुरु बनेंगे और यह भविष्यवाणी आज अक्षरशः सत्य सिद्ध हुई है.
बाल्यकाल से ही आध्यात्मिक प्रकाश
महंत स्वामी महाराज का जीवन इस सत्य का प्रमाण है कि अध्यात्म जन्म से नहीं, स्वभाव से प्रकट होता है. ज्ञान, विनम्रता, निडरता और सेवा- ये चारों गुण उनके बचपन से ही उनके अस्तित्व का हिस्सा थे.
आज वही विनूभाई हैं विश्वगुरु महंत स्वामी महाराज
आज वही बालक, जिनका बचपन पुस्तक, प्रार्थना और पवित्रता में बीता, वह ही आज विश्वभर में 55 देशों, 1,800 मंदिरों और लाखों श्रद्धालुओं के आध्यात्मिक मार्गदर्शक हैं. उनका जीवन सिखाता है- ‘सच्चा विद्यार्थी वही है जो जीवनभर ज्ञान, विनम्रता और सेवा में रमा रहे’.




