भीष्म पंचक पर व्रत कथा पढ़ने का है खास महत्व, मिलता है अपार पुण्य

जितना महत्व हिंदू धर्म में कार्तिक मास का माना जाता है, उससे कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण इस माह के अंतिम पांच दिनों को माना गया है. कार्तिक मास के अंतिम पांच दिनों को भीष्म पंचक के नाम से जाना जाता है, जिसमें 5 दिनों के व्रत का पालन करने की परंपरा है. धार्मिक मान्यता के अनुसार, जो व्यक्ति पूरे कार्तिक मास में व्रत या पूजा-पाठ न कर पाया हो, अगर वह कार्तिक मास के इन अंतिम पांच दिनों में व्रत और पूजा करता है, तो उसे पुण्य फलों की प्राप्ति होती है.
इस साल भीष्म पंचक की शुरुआत 1 नवंबर से हुई, जिसका समापन 5 नवंबर को होगा. इस दौरान व्रत कथा का पाठ करना बेहद ही महत्वपूर्ण और लाभकारी माना गया है. अगर आप भीष्म पंचक व्रत में इस कथा का पाठ करते हैं, तो इससे मोक्ष की प्राप्ति होती है. ऐसे में आइए पढ़ते हैं भीष्म पंचक की व्रत कथा.
भीष्म पंचक की कथा महाभारत के प्रसिद्ध पात्र भीष्म पितामह से जुड़ी है. इस पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय राजा परीक्षित ने महात्मा व्यास जी से पूछा कि आपने हमें कार्तिक मास की कथा आपने सुनाई, लेकिन एकादशी से लेकर पूर्णिमा तक के इन पांच दिनों को भीष्म पंचक क्यों कहा जाता है, इस संबंध में हम जानना चाहते हैं और इन पांच दिनों के व्रत करने वाले को क्या लाभ होता है यह भी बताइए.
यह सुनकर महात्मा व्यास जी ने कहा कि एक समय कानपुर में बहुत निर्धन सोमेश्वर नाम का ब्राह्मण रहता था, जिसका शरीर बहुत ही कमजोर था. लेकिन वह भगवान विष्णु का परम भक्त था. वह कार्तिक मास में रोजाना गंगा स्नान करता और भगवान विष्णु की पूजा करता. एक दिन वह शरीर से बहुत पीड़ित होते हुए भी गंगा स्नान करने गया. लेकिन शरीर कमजोर होने के कारण उससे घाटों की सीढ़ियां उतरी नहीं जाती थीं.
सोमेश्वर किसी तरह उतरकर घाट तक पहुंच ही गया और गंगा स्नान करने के बाद वहीं पर बैठकर संध्योपासना करने लगा. उसी जगह पर गरीब ब्राह्मण के रूप में भगवान अपने भक्त पर कृपा करने के लिए बैठे थे. भगवान विष्णु ने ब्राह्मण को बड़े कष्ट में देखकर पूछा – हे ब्राह्मण, तुम्हारी स्थिति तो स्नान करने की भी नहीं है, फिर भी तुम स्नान के लिये क्यों आये हो और कहो क्या चाहते हो? यह सुनकर बूढ़े ब्राह्मण ने कहा-हे भगवान् ! मैं बहुत गरीब हूं और इस लोक में अपमानित होता हूं और तकलीफ पाता हूं. इसी वजह से मैं हमेशा परेशान रहता हूं. अगर आप कोई उपाय बता सकते हों तो मैं कृप्या बताएं.
ब्राह्मण की बात सुनकर भगवान रूपी ब्राह्मण ने कहा कि यह कार्तिक मास चल रहा है और इसके शुक्ल पक्ष की एकादशी से लेकर पूर्णिमा तक के पांच दिनों को भीष्म पंचक कहा जाता है. ऐसे में पांच दिनों में तुम गंगा के पुत्र महात्मा भीष्म को जलदान देकर गंध, अक्षत, पुष्प से उनकी पूजा करो, और भगवान विष्णु की पूजा तुलसी पुष्प आदि से करो. यह करने से तुम्हारे सारे कष्ट दूर हो जाएंगे और अंत में तुम विष्णु लोक में निवास करोगे. महाभारत की लड़ाई में जब भीष्म पितामह शर-शैया पर लेटे हुए थे, उस वक्त अपने प्रिय अर्जुन को उन्होंने सब प्रकार का राज धर्म, व्यवहार धर्म, ज्ञान धर्म बताया था.
उस समय अर्जुन के सखा श्री कृष्ण भी वहीं पर थे. जब भीष्म पितामह से कृष्ण ने कहा कि हे पितामह ! जो मनुष्य कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी से लेकर पूर्णिमा तक तुम्हारे नाम से जल देगा और आपकी पूजा करेगा, वह पूजा मैं स्वीकार करूंगा और उसके सब कष्ट दूर करूंगा. ऐसे में तुम इस भीष्म पंचक में महात्मा भीष्म का पूजन करो, और ऐसा करने से तुम्हारे सब कष्ट दूर हो जाएंगे. उसके बाद उस ब्राह्मण ने भीष्म पंचक का व्रत किया, जिसके फलस्वरूप वह सभी सुखों को प्राप्त कर अंत में विष्णु लोक में गया. इसी वजह से कार्तिक मास में भीष्म पंचक का व्रत भी जरूर करना चाहिए.




