मनुष्य के जीवन में होना चाहिए संतुलन का भाव: स्वामी प्रणवपुरी
राम कथा का आनंद ले रहे हैं सैकड़ों श्रद्धालु

चरखी दादरी, (ब्यूरो): सुख और दु:ख में जो व्यक्ति समभाव रखे, उसी को संत भाव कहा गया है। मर्यादा पुरुषोत्तम राम को राजतिलक होते-होते वनवास हो गया, तो भी उनके चेहरे पर तनिक चिंता के भाव नहीं थे।
स्थानीय आदर्श धर्मशाला के सुसज्जित सभागार में श्रीराम कथा का सरस वर्णन करते हुए स्वामी प्रणवपुरी ने ये उद्गार प्रकट किए। श्रद्घालुओं को रामचरित मानस की सुमधुर चौपाई सुनाते हुए उन्होंने कहा कि राजा दशरथ ने राम को राजतिलक करने का निर्णय लिया। गुरू वशिष्ठ ने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि राजन, यह शुभ घड़ी समस्त अयोध्या वासियों के लिए हर्ष का विषय है। रानी केकैयी भी राम के राजतिलक से अत्यंत प्रसन्न थीं। दासी मंथरा ने केकैयी के कान भर कर ऐसा षडयंत्र रचा कि राजतिलक की बजाय राम को वनवास का आदेश मिला। पत्नी सीता व अनुज लक्ष्मण के साथ मुनि वेश धारण कर राम वन के लिए प्रस्थान कर गए। वन जाते समय राम कुछ समय रास्ते में ग्रामवासियों के बीच रूके। देवी सीता एवं दोनों भाईयों का रूप-लावण्य देखकर ग्रामवासी मंत्रमुग्ध हो गए। महंत स्वामी प्रणवपुरी ने कहा कि राम जी से हमें ज्ञान मिलता है कि मनुष्य को कभी सुख में अधिक प्रसन्न नहीं होना चाहिए और ना ही कष्ट के समय अधिक दुखी होना व्यक्ति को शोभा देता है। जो भी परिस्थिति हो, परमात्मा की कृपा मान कर उसे स्वीकार कर लेना ही सन्मार्ग है।