खुद डूबे और उद्धव को भी ले डूबे राज! क्या अब भी ठाकरे बंधु साथ लड़ेंगे BMC चुनाव?

चुनाव से पहले उद्धव और राज ठाकरे को बड़ा झटका लगा है. करीब दो दशक बाद साथ आए ठाकरे बंधु को बृहन्मुंबई इलेक्ट्रिक सप्लाई एंड ट्रांसपोर्ट (बेस्ट) क्रेडिट सोसायटी के चुनाव में करारी शिकस्त मिली है. शिवसेना (UBT) और MNS का पैनल 21 सीटों पर चुनाव लड़ा था और सभी में हार मिली. राज और उद्धव मतभेदों को बुलाकर 5 जुलाई, 2025 को एकसाथ आए थे. दोनों भाइयों ने मंच साझा किया था. दोस्ती के बाद दोनों का ये पहला चुनाव था. ऐसे में ये हार उनके लिए झटके से कम नहीं है.
मुंबई बेस्ट क्रेडिट सोसाइटी में 15 हजार से ज्यादा सदस्य हैं. 9 साल बाद चुनाव हुआ था. इस इलेक्शन से पहले तक यहां पर शिवसेना (यूबीटी) का नियंत्रण था. ये चुनाव राज-उद्धव के लिए इस वजह से भी झटका है, क्योंकि इसमें ज्यादातर सदस्य मराठी हैं और ठाकरे बंधु खासतौर से राज मराठियों के हक की लड़ाई लड़ने का दावा करते हैं.
ठाकरे भाइयों की हार से बीजेपी खुश है. चुनाव के नतीजों के बाद खुद सीएम देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि ठाकरे परिवार ने ही इसे राजनीतिक बना दिया था. हम इसे क्रेडिट सोसाइटी के चुनाव के तौर पर देख रहे थे. अब ऐसा लग रहा है कि जनता ने ठाकरे ब्रांड को नकार दिया है. वहीं, डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे ने कहा कि EVM पर शक जताने वालों को करारा जवाब मिल गया है. महाराष्ट्र की जनता ने तय कर लिया है कि जो काम करते हैं उन्हें काम करने का मौका दिया जाए और जो घर बैठते हैं उन्हें घर बैठा दिया जाए.
ठाकरे भाइयों ने ‘उत्कर्ष’ पैनल के तहत चुनाव लड़ा था, जिसने 21 उम्मीदवार उतारे थे. ‘सहकार समृद्धि’ पैनल से बीजेपी नेता प्रसाद लाड और प्रवीण दरेकर चुनाव मैदान में थे. यूनियन नेता शशांक राव ने भी शशांक राव पैनल के तहत अपने उम्मीदवार उतारे थे.
हार के बाद MNS नेता संदीप देशपांडे ने कहा, इसे लिटमस टेस्ट मानना गलत है. इसकी तुलना बीएमसी चुनावों से नहीं की जा सकती. उन्होंने पहले दावा किया था कि चुनाव प्रचार के दौरान पैसे बांटे गए थे. शिवसेना यूबीटी नेता सुहास सामंत ने भी दावा किया कि उनकी पार्टी धनबल के सामने टिक नहीं सकती.
हार के बाद घिरी शिवसेना
चुनाव जीतने के बाद शशांक राव ने उद्धव ठाकरे की कड़ी आलोचना की और दावा किया कि यह परिणाम बेस्ट कर्मचारियों द्वारा शिवसेना-यूबीटी की निजीकरण नीति, कर्मचारियों के भविष्य से खिलवाड़ और ग्रेच्युटी फंड को अपने पसंदीदा ठेकेदारों की तिजोरियों में भरने के खिलाफ दिया गया जवाब है. उन्होंने कहा कि यह सिर्फ इस चुनाव की बात नहीं है. असल में, पूरा ध्यान हमेशा इस बात पर रहता है कि आप क्या करते हैं. क्रेडिट सोसाइटी मुद्दा नहीं थी.
उन्होंने कहा कि इस बार, हम चुनाव प्रचार में बहुत देर से शामिल हुए, लेकिन कर्मचारी उस स्थिति से वाकई नाराज थे जो पैदा की गई थी. भर्तियां सालों से लंबित थीं, कर्मचारियों को सातवें वेतन आयोग का लाभ नहीं मिला था. कई सेवानिवृत्त कर्मचारियों को तीन साल से ग्रेच्युटी नहीं मिली थी.
उल्टी पड़ी कोशिश
ठाकरे बंधुओं द्वारा एक भी सीट न जीत पाने को अब एक बड़ी राजनीतिक शर्मिंदगी के रूप में देखा जा रहा है. नगर निगम चुनावों से पहले एकता दिखाने और जनभावनाओं को परखने की उनकी कोशिश उल्टी पड़ गई है. बीएमसी चुनाव नजदीक है ऐसे में यह नतीजा उनके गठबंधन के भविष्य और मुंबई में सत्तारूढ़ गठबंधन को कड़ी चुनौती देने की उनकी क्षमता पर गंभीर सवाल खड़े करता है.
क्या अब भी BMC चुनाव साथ लड़ेंगे दोनों?
सवाल उठता है कि क्या अब भी ठाकरे भाई साथ चुनाव लड़ेंगे, क्योंकि बीएमसी चुनाव में चुनौती सोसायटी चुनाव से भी बड़ी होगी. बेस्ट क्रेडिट सोसायटी में अधिकांश कर्मचारी मराठी भाषी लोग हैं और इस चुनाव को मराठी मतदाताओं की निष्ठा के बारे में एक छोटा सा संकेत माना जा रहा है.
उद्धव और राज के रास्ते पिछले दो दशकों में अलग-अलग रहे हैं. उद्धव ने शिवसेना को कांग्रेस-एनसीपी के साथ महाविकास अघाड़ी में लाया, तो राज ने पीएम मोदी और बीजेपी की तारीफ करते हुए आक्रामक हिन्दुत्व और मराठी मानुस की राजनीति को धार दी. लेकिन 2024 लोकसभा चुनाव में दोनों को भारी नुकसान हुआ. ऐसे में अब दोनों ने विरोधियों से लड़ने के लिए अपनों से समझौता की राजनीति शुरू की.
जानकार कहते हैं कि शिवसेना (यूबीटी)-MNS को इस चुनाव को ठाकरे बंधुओं के संयुक्त मोर्चे के रूप में पेश नहीं करना चाहिए था. कोई भी सहकारी ऋण समिति का चुनाव इतना हाई-प्रोफाइल नहीं रहा. MNS-शिवसेना (यूबीटी) को इस चुनाव को इतना प्रमुख नहीं बनाना चाहिए था. अब, यह स्पष्ट है कि बीजेपी उनकी हार का फायदा उठाएगी. यह परिणाम दोनों दलों के लिए एक करारा झटका है, खासकर पार्टी कार्यकर्ताओं के मनोबल के लिहाज से.
हार गठबंधन के लिए इस वजह से भी झटका है क्योंकि वर्षों से इस सोसायटी पर बेस्ट कामगार सेना का प्रभुत्व रहा है, जो उद्धव ठाकरे के गुट से संबद्ध है. इन नतीजों से यह भी तय हो गया कि बीजेपी गठबंधन को ठाकरे भाइयों के साथ आने से कोई खतरा नहीं है और प्रभावशाली सहकारी संस्था पर उनका अपना प्रभुत्व भी कम हो गया.