सत्य परमात्मा है और असत्य काल है: कंवर हुजूर

भिवानी,(ब्यूरो): सत्संग गुरु का उपदेश या वाणी का पाठ भर नहीं है बल्कि सत्संग तो हर पल सत्य का संग है और सत्य को पल भर के लिए भी क्यों छोडऩा। सत्य परमात्मा है और असत्य काल है। ज्यों ही सत्य का संग छटेगा त्यों त्यों ही काल की घात पड़ेगी।जो सतगुरु के संग रहते हैं उनका काल कुछ नहीं बिगाड़ पाता।संत सतगुरु के समक्ष हमेशा दंडवत रहो क्योंकि यह दीनता आपके सभी विकार हर लेती है।यह सत्संग वचन परमसंत सतगुरु कंवर साहेब महाराज ने दिनोद धाम स्थित राधास्वामी आश्रम में सेवादारों को दर्शन देते हुए फरमाए। हुजूर महाराज गुरु पूर्णिमा के अवसर पर होने वाले वार्षिक भंडारे और सत्संग की तैयारियों हेतु जुटे सेवादारों को दर्शन सत्संग और निर्देश दे रहे थे।हुजूर कंवर साहेब ने कहा कि परमात्मा और सेवक का और गुरु व शिष्य का नाता रूहानी होता है।यह नाता प्रेम का नाता है।प्रेम भी वो जो दिखावटी नहीं होता।प्रेम करना आसान नहीं है।प्रेम तभी होगा जब पूर्ण समर्पण होगा।प्रेम दुनियादारी का मोहताज नहीं है।कितने ऐसे प्रकरण है जब प्रभु के प्रेम में लोगों ने धन संपति कुटुंब कबीला तन मन सब बिसार दिया।उन्होंने उपस्थित सेवादारों को फरमाया कि गुरु प्रेमियों,गुरु भक्ति करने वाले के लिए गुरु पूर्णिमा से बड़ा कोई पर्व नहीं है क्योंकि गुरु भक्त गुरु को ही परमात्मा मानते हैं।परमात्मा वाला गुण सतगुरु में भी है।परमात्मा का नूरी रूप देखने के लिए सतगुरु को स्थूल रूप से प्रेम करना होगा।उन्होंने फरमाया कि सत्संग संतो की चेतावनी है।इस चेतावनी से कुछ संवर जाते है तो कुछ बिखर जाते हैं।बाधाएं हर एक के जीवन में आती हैं।जो सतगुरु के पल्ले लगे रहते हैं वो संवर जाते हैं और जो जीवन की बाधाओं से घबरा कर गुरु से विश्वास उठा लेते हैं वो बिखर जाते हैं।गुरु के सामने जो शिष्य दिन हीन बना रहता है वो गुरु की रहमत पा जाता है लेकिन जो गुरु ज्ञान से बढक़र स्वयं के ज्ञान को बड़ा मानता है उससे बड़ा कृतघ्न नहीं है।गुरु महाराज जी ने फरमाया कि यह गलती मुझसे भी हुई थी जब मैं प्रारम्भ में मेरे गुरु संत ताराचंद जी की शरण में आया था।लुधियाना स्टेशन पर जब मुझे अध्यात्म की पुस्तक पढ़ते देख उन्होंने कहा कि मास्टर क्या पढ़ता है ये अभी तेरी समझ में नहीं आएगी। मुझे अहंकार हुआ कि मै एम ए बीएड मास्टर और मेरा अनपढ़ गुरु मुझसे कह रहा है कि ये मुझे समझ में नहीं आएगी।बाद में उनकी शरण में रहकर जाना कि वो उस दिन सही कह रहे थे।सच में महापुरुषों की बानी को हम किताबी ज्ञान से नहीं परख सकते।उस अनुभव बानी को तो अनुभव से ही समझा जा सकता है। यह भी सत्य है कि गुरु के होने के बाद शिष्य का अपना कुछ नहीं रहता। समर्पण है तो सब कुछ गुरु का ही तो है।