‘जूता भी मिलेगा…’ प्रोफेसर को रजिस्ट्रार ने कहा, लखनऊ विश्वविद्यालय में बैठक के दौरान ऐसा क्या हुआ? मच गया बवाल

लखनऊ विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की तैयारियों के लिए आयोजित बैठक के दौरान एक विवादास्पद घटना ने हलचल मचा दी है. विश्वविद्यालय के मंथन हॉल में हुई इस बैठक में लखनऊ विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (LUTA) के महामंत्री और कॉमर्स विभाग के प्रमुख प्रो. राम मिलन द्वारा पूछे गए एक सवाल के जवाब में प्रभारी रजिस्ट्रार और एग्जामिनेशन कंट्रोलर विद्यानंद त्रिपाठी ने कथित तौर पर अभद्र टिप्पणी की. इस घटना से संबंधित एक मैसेज सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गया, जिसके बाद शिक्षकों में आक्रोश देखा गया.
बैठक के दौरान प्रो राम मिलन ने पूछा कि क्या योग दिवस के आयोजन में भाग लेने वाले शिक्षकों को टी-शर्ट और लोअर प्रदान किया जाएगा. इस सवाल के जवाब में विद्यानंद त्रिपाठी ने कथित रूप से कहा, “जूता भी मिलेगा.” यह टिप्पणी शुक्रवार को कई व्हाट्सएप ग्रुपों और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर वायरल हो गई. कुछ पोस्ट्स में इस टिप्पणी को जातिवादी घृणा से जोड़कर भी देखा गया, जिसने विवाद को और हवा दी.
क्या बोले प्रो राम मिलन?
प्रो राम मिलन ने इस मामले पर सफाई देते हुए कहा, “वायरल मैसेज में उल्लिखित शब्द सही हैं, लेकिन यह बातचीत हल्के-फुल्के माहौल में हुई थी. यह कोई औपचारिक या आधिकारिक संवाद नहीं था.” उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि इसे गलत संदर्भ में पेश किया जा रहा है.
लखनऊ विश्वविद्यालय शिक्षक संघ के अध्यक्ष डॉ. अनित्य गौरव ने इस घटना पर कहा, “मैं मंथन हॉल की बैठक में मौजूद था. प्रो. राम मिलन मेरे साथ थे, लेकिन मेरे सामने ऐसी कोई अभद्र टिप्पणी नहीं हुई.” उन्होंने बताया कि प्रो. राम मिलन बैठक शुरू होने के 15 मिनट बाद पहुंचे थे, और बैठक के बाद बारिश होने के कारण सभी लोग प्रशासनिक भवन में रुके थे. इस दौरान कोई व्यक्तिगत वार्तालाप हुआ हो, तो इसकी जानकारी उन्हें नहीं है. डॉ. गौरव ने यह भी कहा कि वायरल मैसेज के बाद कुछ वरिष्ठ शिक्षकों ने उनसे इस मामले में जानकारी मांगी थी.
शिक्षकों में आक्रोश, लेकिन खुलकर बोलने से परहेज
सोशल मीडिया पर मैसेज वायरल होने के बाद शिक्षक समुदाय में नाराजगी देखी गई. हालांकि, ज्यादातर शिक्षक इस मुद्दे पर खुलकर बोलने से बच रहे हैं. कई शिक्षकों ने निजी तौर पर विद्यानंद त्रिपाठी के व्यवहार की निंदा की, लेकिन सार्वजनिक रूप से कोई बयान देने से कतराते दिखे. कुछ सोशल मीडिया पोस्ट्स में इस घटना को “जातिवादी घृणा की शर्मनाक मिसाल” करार दिया गया, जिससे मामला और संवेदनशील हो गया है.
इस मामले में लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति आलोक राय या अन्य वरिष्ठ अधिकारियों की ओर से कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है. बैठक में कुलपति की मौजूदगी के बावजूद इस घटना पर प्रशासन की ओर से कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है.