विलुप्त होती जा रही है प्राचीन परिवहन सेवा बैलगाड़ी: हेमंत सैनी

भिवानी, (ब्यूरो): एक सर्वे के दौरान पता चला कि परिवहन के साधन के रूप में बैलगाड़ी से ही मनुष्य ने एक कोने से दूसरे कोने तक की यात्राएं कीं। हेमंत सैनी ने सर्वे के दौरान मिली जानकारी को साझा करते हुए बताया कि राजमहलों, किलों और भवनों को बनाने के लिए निर्माण सामग्री बैलगाड़ी से ही ले जाए गए। लेकिन हमारी विरासत के ये अनमोल धरोहर अब विलुप्त होने की कगार पर हैं।सभ्यता के विकास के साथ मनुष्य ने नए-नए प्रयोग करते हुए जीवन की गाड़ी को चलाने के लिए अनेक तरह के साधन और औजार विकसित किए। हमारे पूर्वज हमेशा प्रकृति के साथ तादात्म्य बैठाकर विकास की राह पर आगे बढ़े। जब आज की तरह सडक़ें नहीं थीं, आधुनिक विकास का माहौल नहीं था, तब मनुष्य ने बैलगाड़ी के सहारे दुनिया नाप ली। परिवहन के साधन के रूप में बैलगाड़ी से ही मनुष्य ने एक कोने से दूसरे कोने तक की यात्राएं कीं। राजमहलों, किलों और भवनों को बनाने के लिए निर्माण सामग्री बैलगाड़ी से ही ले जाए गए। लेकिन हमारी विरासत के ये अनमोल धरोहर अब विलुप्त होने की कगार पर हैं। जखनी जलग्राम के संस्थापक और जल योद्धा उमा शंकर पांडेय बताते हैं कि जब ट्रैक्टर आया तो बैलगाड़ी का प्रयोग बंद होना शुरू हो गया। बैलगाड़ी को ट्रैक्टर ने निगल लिया। एक समय बुंदेलखंड के 13 जिलों के 11000 गांव में 9 लाख 50 हजार बैलगाडिय़ां थीं। हर गांव में करीब 95 बैलगाड़ी थी। इसको बनाने वाले कारीगर, जिनका एक जमाने में इंजीनियर के बराबर सम्मान था, अब या तो वृद्ध हो गए अथवा काम नहीं होने से दूसरे काम करके जीविका चलाने के लिए पलायन कर गए।