धर्म/अध्यात्म

हरि का ध्यान धर ले रे ओ मूढ़ मना- आचार्य गोविंद कृष्ण शास्त्री

श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ में हुई मधुर भजनों की अमृत वर्षा

चरखी दादरी, (ब्यूरो): श्री दादी सती मंदिर परिसर में चल रहे श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ में भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का वर्णन करते हुए आचार्य गोविंद कृष्ण शास्त्री ने कहा कि मनुष्य संसार में अपने नित्य कर्म करते हुए मन को हरि सुमिरन में लगा दे तो जीवन में परम आनंद को पाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि भगवान का भजन करने से साधक का चित और आत्मा दोनों प्रसन्न रहते हैं।
राजा परीक्षित को शुकदेव मुनि द्वारा सुनाई गई मोक्षदायिनी श्रीमद् भागवत कथा का वाचन करते हुए गोविंद कृष्ण शास्त्री ने कहा कि कलियुग में भगवान में ध्यान लगा कर मनुष्य को अपना जीवन व्यतीत करना चाहिए। सांसारिक विषय भोग से एक आदमी को शारीरिक व मानसिक सुख तो क्षणिक मिल सकता है, लेकिन आत्मिक सुख की प्राप्ति हरि के ध्यान से ही संभव है। जो इस संसार, समूचे ब्रह्मांड का मालिक है, जिस की मर्जी से यह जगत गतिमान है, वही हमारा सच्चा स्वामी है। जिसकी कृपा से हमें मनुष्य जीवन की प्राप्ति हुई, उसकी सादगी को स्वीकार करने में लेशमात्र भी संकोच नहीं करना चाहिए। वो जगत नियंता, परमपिता परमेश्वर सदैव अपने शरणागत भञ्चतों पर दया का आर्शीवाद रखता है। मैं को भूल कर तू ही तू का भाव हमें परमात्मा के प्रति रखना चाहिए।
आचार्य गोविंद कृष्ण शास्त्री ने कहा कि कृष्ण का महारास इतना आनंदमयी है कि स्वयं महादेव भी खुद को इसमें शामिल करने से रोक नहीं सके। गोपी वेष को धारण कर शिव वंशीवट में बांसुरी की तान पर चल रहे महारास में पहुंच गए थे। उनका यह मोहिनी रूप देखकर स्वयं पार्वती भी दंग रह गई थी। श्रीहरि भगवान महादेव को पहचान गए और उन्हें प्रणाम किया। आज यह स्थान वृंदावन में गोपेश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्ध है। उन्होंने बताया कि अक्रूर जी बालक गोपाल को महापापी कंस का मर्दन करने के लिए मथुरा ले गए। यशोदा मैया का मन घबरा गया कि उनका नन्हा कृष्ण कैसे कंस का सामना करेगा। अक्रूर जी ने कहा कि कृष्ण के सिवाय और कोई कंस को नहीं मार सकता। मथुरा में कंस को परलोक पहुंचा कर भगवान ने महाराजा उग्रसेन को कारागार से मुञ्त करवाया।

 

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