सामान्य से ज्यादा बारिश फिर भी जुलाई में गर्मी ने तोड़ा रिकॉर्ड, रात का तापमान भी रहा हाई…आखिर ये माजरा क्या है?
भारत में जुलाई के महीने में सामान्य के मुकाबले 9% ज्यादा बारिश हुई है. भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के अनुसार देश के मध्य क्षेत्र में 33% ज्यादा बरसात दर्ज हुई. लेकिन दिलचस्प बात है कि सामान्य से ज्यादा बारिश होने के बावजूद, इस बार के जुलाई महीने ने गर्मी का 100 साल पुराना रिकॉर्ड तोड़ दिया है. 1901 के बाद से यह अब तक का दूसरा सबसे गर्म जुलाई है. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर ऐसा हो क्यों रहा है. क्यों बरसात के बाद भी लोगों को गर्मी से राहत नहीं मिल रही है?
IMD ने गुरुवार को जानकारी दी कि रात के तापमान के मामले में भारत ने अब तक के सबसे गर्म जुलाई का सामना किया है.उत्तर प्रदेश, गुजरात और केरल समेत विभिन्न राज्यों में रिकॉर्ड गर्मी के साथ ‘असाधारण भारी बारिश’ हुई, जिसके कारण पिछले महीने यहां बाढ़ जैसे हालात भी बन गए. दूसरी ओर भारत के पूर्व और उत्तर-पूर्व क्षेत्रों के लिए, यह औसत और न्यूनतम तापमान दोनों में रिकॉर्ड पर सबसे गर्म जुलाई था.
भारत में बारिश के बाद भी राहत क्यों नहीं?
भारत में बरसात से राहत न मिलने की बड़ी वजह पूरे क्षेत्र में समान रूप से बरसात न मिल पाना है. Skymet Weather Services के वाइस-प्रेसिडेंट महेश पालावत ने TV9 को बताया, इस बार जुलाई में बारिश जरूर हुई है, लेकिन पिछली बार की तुलना में पूर्वी और पूर्वोत्तर में कम बारिश दर्ज हुई है. उत्तर पश्चिम भारत में भी सामान्य स्तर से कम बारिश हुई. दूसरी ओर मध्य भारत और दक्षिण भारत में रिकाॅर्ड-तोड़ बारिश हुई. उदाहरण के लिए मध्य भारत में जुलाई में 321.3 मिमि सामान्य बारिश होनी थी. लेकिन हुई उससे 33 फीसदी ज्यादा यानी 427.2 मिमि.’
इसके अलावा जिस तरह से रुक-रुककर बारिश हुई है, उससे तापमान में कुछ खास फर्क नहीं पड़ा है. इस तरह की बारिश को पैची रेन कहते हैं. इनसे व्यापक रूप से राहत नहीं मिलती.
दिल्ली में गर्मी के थपेड़े और बारिश एक साथ कैसे?
महेश पालावत ने बातचीत में बताया कि दिल्ली की ओर सूखी और गर्म पूर्वी हवाएं चल रही हैं. इसके साथ ही वातावरण में उमस भी बहुत बढ़ गई है. नतीजतन तापमान रिकाॅर्ड तोड़ रहा है.
गर्मी बढ़ने से वातावरण में वाटर वेपर की तादाद बढ़ जाती है. आम भाषा में यह पानी के कण हैं, लेकिन वैज्ञानिक भाषा में इन्हें ग्रीनहाउस गैस कहते हैं. ये गैस सूरज की गर्मी को धरती के वातावरण में रोक देते हैं, जिससे तापमान और बढ़ जाता है. नासा के एक अनुमान के अनुसार, पृथ्वी के तापमान में हर 1 डिग्री की बढ़त पर वायुमंडल में वाटर वेपर की मात्रा लगभग 7% बढ़ सकती है.
विशेषज्ञों का कहना है कि वाटर वेपर बढ़ने से कुछ ही समय में भारी बारिश देखने को मिलती है. ऐसा इसलिए क्योंकि जलवाष्प का अणु औसतन केवल नौ दिन ही वायुमंडल में रहता है. इसके बाद यह बारिश या बर्फ के रूप में नीचे आ जाता है.