कुलदीप सेंगर की छोटी बेटी इशिता की प्रतिक्रिया, सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर दुख जताया

उन्नाव रेप केस मामले में जेल में बंद कुलदीप सिंह सेंगर को सुप्रीम कोर्ट से तगड़ा झटका लगा है. सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सीबीआई की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी है जिसमें सेंगर की दोषसिद्धि पर रोक लगाते हुए सशर्त जमानत दी गई थी. अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सेंगर की छोटी बेटी इशिता सेंगर ने सोशल मीडिया पर एक लंबा चौड़ा पोस्ट किया है जिसमें उन्होंने कहा कि उनका अदालत पर भरोसा था और पिता के बाहर निकलने का इंतजार कर रही थीं, लेकिन आज स्थिति बिल्कुल विपरीत हो गई है और उनका विश्वास टूट रहा है.
इशिता ने लिखा है, मैं यह पत्र एक ऐसी बेटी के रूप में लिख रही हूं जो थकी हुई, डरी हुई और धीरे-धीरे विश्वास खो रही है, लेकिन फिर भी उम्मीद से जुड़ी हुई है क्योंकि अब कहीं और जाने की जगह नहीं बची है. आठ वर्षों से, मेरा परिवार और मैं चुपचाप, धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा कर रहे हैं. यह मानते हुए कि यदि हम सब कुछ ‘सही तरीके से’ करेंगे, तो अंततः सच्चाई स्वयं सामने आ जाएगी. हमने कानून पर भरोसा किया. हमने संविधान पर भरोसा किया. हमने भरोसा किया कि इस देश में न्याय शोर-शराबे, हैशटैग या जन आक्रोश पर निर्भर नहीं करता.
‘विश्वास टूट रहा, इसलिए लिख रही हूं…’
इशिता ने कहा है कि मेरे शब्द सुने जाने से पहले ही, मेरी पहचान एक लेवल तक सिमट जाती है. भाजपा विधायक की बेटी. मानो इससे मेरी इंसानियत ही मिट जाती है. मानो सिर्फ इसी बात से मैं निष्पक्षता, सम्मान या बोलने के अधिकार से भी वंचित हो जाती हूं. जिन लोगों ने मुझसे कभी मुलाकात नहीं की, एक भी दस्तावेज नहीं पढ़ा, एक भी अदालती रिकॉर्ड नहीं देखा, उन्होंने तय कर लिया है कि मेरे जीवन का कोई मूल्य नहीं है.
इन सालों में, सोशल मीडिया पर मुझे अनगिनत बार कहा गया है कि मेरा बलात्कार किया जाना चाहिए, मार डाला जाना चाहिए या सिर्फ मेरे अस्तित्व के लिए दंडित किया जाना चाहिए. यह नफरत काल्पनिक नहीं है. यह रोजाना होती है. लगातार हो रही है. और जब आपको एहसास होता है कि इतने सारे लोग मानते हैं कि आप जीने के लायक भी नहीं हैं, तो यह आपको अंदर से तोड़ देता है.
सच्चाई को तमाशे की जरूरत नहीं होती- इशिता
इशिता आगे लिखती हैं, धमकियों और टिप्पणियों के बाद भी हमने मौन इसलिए नहीं चुना क्योंकि हम ताकतवर थे बल्कि इसलिए कि हम संस्थाओं में विश्वास रखते थे. हमने विरोध प्रदर्शन नहीं किया. हमने मीडिया में शोर नहीं मचाया, पुतले नहीं फूकें और न ही हैशटैग ट्रेंड किए. हमने इंतजार किया क्योंकि हमारा मानना था कि सच्चाई को तमाशे की जरूरत नहीं होती है.
उस मौन की हमें क्या कीमत चुकानी पड़ी?
उन्होंने आगे कहा कि हमारी गरिमा को धीरे-धीरे छीन लिया गया है. आठ सालों तक हर दिन हमारा अपमान किया गया, हमारा उपहास किया गया और हमें अमानवीय व्यवहार का सामना करना पड़ा. एक कार्यालय से दूसरे कार्यालय भागते-भागते, पत्र लिखते, फोन करते, अपनी बात सुनाने की गुहार लगाते हुए हम आर्थिक, भावनात्मक और शारीरिक रूप से थक चुके हैं. ऐसा कोई दरवाजा नहीं था जिस पर हमने दस्तक न दी हो. ऐसा कोई नहीं था जिससे हम संपर्क न कर सकें. ऐसा कोई मीडिया हाउस नहीं था जिसे हमने पत्र न लिखा हो. इसके बाद भी हमारी किसी ने नहीं सुनी. लोगों ने इसलिए हमारी नहीं सुनी क्योंकि हमारा सच इनकन्वेनिएंट (असुविधाजनक) था.
इशिता ने कहा है कि लोग हमें ताकतवर कहते हैं, लेकिन मैं पूछना चाहती हूं कि क्या एक ताकतवर परिवार 8 साल तक चुप रह सकता है क्या? हम एक ऐसी व्यवस्था पर भरोसा करते रहे जो आपके अस्तित्व को भी स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है जबकि आपके नाम को रोजाना बदनाम किया जाता रहा. एक ऐसा भय जो इतना प्रबल है कि न्यायाधीश, पत्रकार, संस्थाएं और आम नागरिक सभी चुप रहने के लिए मजबूर हैं. एक ऐसा डर बनाया गया कि कोई भी हमारे साथ खड़ा होने की हिम्मत न करे.
‘यह सब देखना काफी दुखदायक है’
अंत में पूर्व बीजेपी की विधायक की बेटी ने लिखा है कि पिता के साथ यह सब होते हुए देखना दुखदायक है. अगर आक्रोश और गलत सूचनाओं से सच्चाई इतनी आसानी से दब सकती है तो हमारे जैसे व्यक्ति का क्या होगा? अगर दबाव और जन उन्माद सबूतों और उचित प्रक्रिया पर हावी होने लगे, तो एक आम नागरिक को वास्तव में क्या सुरक्षा मिलेगी? मैं यह पत्र किसी की धमकाने या सहानुभूति पाने के लिए नहीं लिख रही हूं. इसलिए लिख रहूं कि मैं डरी हुई हूं. मुझे अब भी विश्वास है कि कोई न कोई, कहीं न कहीं, मेरी बात सुनने की परवाह करेगा.
इशिता के पोस्ट की आखिरी कुछ लाइनें…
- हम कोई एहसान नहीं मांग रहे हैं.
- हम अपनी पहचान के कारण सुरक्षा नहीं मांग रहे हैं.
- हम न्याय मांग रहे हैं क्योंकि हम इंसान हैं.
- कृपया कानून को बिना किसी डर के बोलने दें.
- कृपया सबूतों की जांच बिना किसी दबाव के होने दें.
- कृपया सच्चाई को सच्चाई के रूप में स्वीकार करें, भले ही वह अलोकप्रिय हो.
- मैं एक बेटी हूं जिसे अब भी इस देश पर विश्वास है.
- कृपया मुझे अपने इस विश्वास पर पछतावा न होने दें.
चार सप्ताह बाद फिर सुनवाई करेगा सुप्रीम कोर्ट
उच्चतम न्यायालय ने आज दिल्ली हाई कोर्ट के दोषसिद्धि को सस्पेंड और जमानत के फैसले पर रोक लगते हुए सेंगर को नोटिस जारी कर चार हफ्ते बाद जवाब तलब किया है. अगली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट लोक सेवक को लेकर न्यायिक फैसलों और कानूनी परिभाषा के सवालों पर सुनवाई करेगा ताकि चीजों में स्पष्टता आ सके.




