राजनीति

पुलिस फायरिंग में हुई थी 13 की मौत, TMC के लिए आज भी क्यों अहम है 32 साल पहले घटी वो घटना

पश्चिम बंगाल में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं और यहां पर सत्तारुढ़ तृणमूल कांग्रेस पार्टी (TMC) अभी से ही चुनावी माहौल में जुट गई है. ममता बनर्जी की अगुवाई वाली पार्टी के लिए 21 जुलाई की तारीख बेहद खास है और इस दिन को वह ‘शहीद दिवस’ के रूप में बेहद उत्साह के साथ मनाती है. अगले साल चुनाव से पहले पड़ने वाले इस शहीद दिवस के लिए पार्टी में अभी से हलचल है और पार्टी में नंबर टू अभिषेक बनर्जी ने ऐलान किया कि इस दिन के लिए बनने वाले पोस्टर में सिर्फ ममता बनर्जी की तस्वीर होनी चाहिए.

पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव और ममता के भतीजे अभिषेक बनर्जी ने ऐलान किया था कि 21 जुलाई की शहीद दिवस रैली के सभी आधिकारिक पोस्टरों पर सिर्फ ममता बनर्जी की तस्वीर होनी चाहिए. चूंकि वह 1993 में हुए आंदोलन का हिस्सा नहीं थे, ऐसे में उनकी तस्वीर का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए. उनके इस अनुरोध के बाद तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने तय करते हुए ऐलान किया कि अगले महीने 21 जुलाई की शहीद दिवस रैली के सभी आधिकारिक पोस्टरों पर पार्टी प्रमुख ममता बनर्जी की ही तस्वीर होगी.

संसद सत्र में भी शामिल नहीं होंगे TMC के MPs

पार्टी के लिए इस खास दिन का कितना महत्व है, इसे इस तरह से समझा जा सकता है कि 21 जुलाई के दिन जब दिल्ली में संसद का सत्र चल रहा होगा तब भी इस दिन टीएमसी के एक भी सांसद दिल्ली में नहीं होंगे. ‘शहीद दिवस’ पर आयोजित रैली को लेकर टीएमसी सांसद सुदीप बंद्योपाध्याय ने बताया, “21 जुलाई को संसद का मानसून सत्र शुरू हो रहा है. इस मानसून सत्र के दौरान, हमारे सांसद 21 जुलाई को संसद नहीं जाएंगे. इस बार यह रैली (‘शहीद दिवस’ रैली) बहुत बड़ी होने जा रही है क्योंकि अगले साल 2026 में हमारे पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव भी है.”

अभिषेक बनर्जी के ऐलान की वजह

ममता बनर्जी के भतीजे और पार्टी में नंबर टू माने जाने वाले अभिषेक के इस ऐलान ने राज्य के सियासी हलकों में हलचल फैला दी है क्योंकि इससे पार्टी की आंतरिक स्थिति को लेकर अटकलें भी लगाई जाने लगी हैं. लोकसभा में टीएमसी के नेता सुदीप बंदोपाध्याय ने कहा, “21 जुलाई की रैली के पोस्टर में सिर्फ ममता की तस्वीर होगी. अभिषेक ने खुद कहा था कि उनकी तस्वीर वहां नहीं होनी चाहिए, क्योंकि वह 1993 के मूल आंदोलन का हिस्सा नहीं थे.”

विधानसभा चुनाव से ठीक पहले पड़ने वाले इस शहीद दिवस को लेकर पार्टी में खासा उत्साह है तो इस विशाल रैली से जुड़े पोस्टर पर किसकी तस्वीरें होनी चाहिए, इसे लेकर खूब मंथन हो रहा था. पार्टी के अंदर जुड़े पोस्टर को लेकर बहस की शुरुआत करीब डेढ़ साल पहले हुई थी. बात नवंबर 2023 की है जब नेताजी इंडोर स्टेडियम में एक बड़ी रैली को लेकर सिर्फ ममता बनर्जी की तस्वीर लगाई गई थी.

पुलिस की फायरिंग में मारे गए थे 13 कार्यकर्ता

विधानसभा चुनाव से पहले विवाद नहीं

तब पार्टी के प्रवक्ता कुणाल घोष ने सार्वजनिक रूप से अभिषेक बनर्जी की तस्वीर नहीं लगाए जाने पर सवाल उठाया और पार्टी के अंदर बहस छिड़ गई थी. अगले कुछ महीने बाद राज्य में विधानसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में लंबे समय से सत्ता पर काबिज टीएमसी अपने खिलाफ किसी तरह का दुष्प्रचार नहीं चाहती. चुनाव में उसे भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) से कड़ी चुनौती मिलने के आसार हैं. इन चीजों को ध्यान में रखते हुए टीएमसी ने पोस्टर को लेकर स्थिति साफ कर दी और रैली से जुड़े पोस्टर में सिर्फ ममता की ही फोटो लगाई जाएगी.

ममता बनर्जी की अगुवाई में यह आंदोलन साल 1993 में निकाला गया था. जबकि अभिषेक बनर्जी के राजनीतिक करियर की शुरुआत साल में 2011 में टीएमसी के सदस्य के रूप में एंट्री करने से हुई. तब उन्हें तृणमूल युवा का अध्यक्ष बनाया गया, बाद में तृणमूल युवा कांग्रेस में इस संगठन का विलय कर दिया गया.

21 जुलाई 1993 को क्या हुआ था

वर्तमान मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जुलाई 1993 में 38 साल की युवा नेता थीं, और कांग्रेस की तेजतर्रार नेताओं में शुमार की जाती थीं. वह अपने कड़े तेवर के लिए देशभर में अपनी खास पहचान बना चुकी थीं. वह तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव की सरकार में खेल मंत्री भी रह चुकी थीं. बाद में खेल से जुड़ी नीतियों को लेकर सरकार से मतभेद के चलते उन्होंने मंत्री पद छोड़ दिया.

हालांकि तब वह प्रदेश युवा कांग्रेस की प्रमुख भी थीं. करीब 2 साल पहले 1991 में पश्चिम बंगाल में कम्युनिस्ट लेफ्ट फ्रंट एक बार फिर से बड़ी बहुमत के साथ सत्ता में लौटी, ज्योति बसु ने फिर से मुख्यमंत्री पद की कमान संभाली. लेकिन इस बार लेफ्ट फ्रंट की जीत विवादों में रही और विपक्ष ने चुनाव में धोखाधड़ी किए जाने का गंभीर आरोप लगाया. आरोप धीरे-धीरे राज्य में नए आंदोलन का रूप में बदल गया. विपक्ष की ओर से वोटर आईडी कार्ड को वोट डालने के लिए अनिवार्य करने की मांग शुरू कर दी गई.

कांग्रेस के प्रदर्शन की वजह क्या

तब के चुनाव में चुनाव आयोग की ओर से वोटिंग के लिए वोटर्स को फोटो पहचान पत्र नहीं जारी किया जाता था. वोटर लिस्ट में सिर्फ वोटर का नाम ही रहता था. ऐसे में ममता का आरोप था कि वोटर्स के फोटो नहीं रहते हैं. इस कारण लेफ्ट पार्टी चुनाव में धांधली करती है.

21 जुलाई 1993 की सुबह 10 बजे के करीब ममता इस आंदोलन का नेतृत्व कर रही थीं और उनकी योजना राइटर्स बिल्डिंग तक मार्च करते हुए प्रदर्शन करने की थी. वहां पर सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए थे. 11 बजे के करीब राइटर्स बिल्डिंग से महज एक किलोमीटर पहले, मेयो रोड पर मेट्रो सिनेमा और एस्प्लेनेड में डोरिना रोड क्रॉसिंग के पास, हजारों की संख्या में तैनात पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को रोकने की कोशिश की.

कहा जाता है कि सीपीएम नेताओं को यह डर सता रहा था कि ममता पार्टी कार्यकर्ताओं को साथ लेकर राइटर्स पर कब्जा कर लेंगी. ऐसे में इस तरह की आशंका को देखते हुए तत्कालीन गृह मंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने फायरिंग करने का आदेश जारी कर दिया. पुलिस की फायरिंग से बाद वहां पर हालात बहुत खराब हो गए. फायरिंग की घटना में युवा कांग्रेस के 13 लोग मारे गए और कई लोग घायल हो गए.

पुलिस फायरिंग के दौरान खुद ममता भी घायल हो गई थीं (FB)

सत्ता में आने के बाद बड़े स्तर पर आयोजन

पुलिस फायरिंग के दौरान ममता बनर्जी को भी चोट लगी और वह घायल हो गईं. इस घटना से ममता के राजनीतिक करियर बड़ा बदलाव आया और राज्य की खास नेताओं के रूप में पहचान बन गई. इस बीच कांग्रेस पार्टी के अंदर घमासान बढ़ता ही चला गया और फिर 1997 में ममता ने पार्टी छोड़ दिया और मुकुल रॉय के साथ मिलकर 1 जनवरी 1998 को तृणमूल कांग्रेस पार्टी का गठन किया.

नई पार्टी के गठन के करीब एक दशक बाद टीएमसी साल 2011 में पश्चिम बंगाल की सत्ता पर पहुंचने में कामयाब रही. पार्टी ने 3 दशक से भी ज्यादा समय से सत्ता पर काबिज लेफ्ट सरकार को बेदखल किया और ममता बनर्जी राज्य की मुख्यमंत्री बनीं.

सत्ता में आने के बाद ममता सरकार ने 21 जुलाई की घटना को हर साल मनाने का फैसला लिया. खास बात यह है कि 21 जुलाई की घटना को कांग्रेस भी शहीद दिवस के रूप में मनाती है. सत्ता में आने के बाद ममता की पार्टी इस दिन को और बड़े स्तर पर मनाती रही है.

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